कबूतर या किसी भी पक्षी का कोई खास देश होता है क्या !

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कबूतर या किसी पक्षी को कोई देश नहीं होता। हम तो यही सुनते आए हैं कि पक्षियों का कोई देश नहीं होता, लेकिन उनकी यह आजादी छिन गयी है।
कबूतर या किसी पक्षी को कोई देश नहीं होता। हम तो यही सुनते आए हैं कि पक्षियों का कोई देश नहीं होता, लेकिन उनकी यह आजादी छिन गयी है।
  • ध्रुव गुप्त

कबूतर या किसी पक्षी को कोई देश नहीं होता। हम तो यही सुनते आए हैं कि पक्षियों का कोई देश नहीं होता, लेकिन उनकी यह आजादी छिन गयी है। शायद वैश्विक महामारी के इस दौर ने ही उनसे यह आज़ादी भी छीन ली है। घटना हाल की है जब एक सफेद कबूतर की नागरिकता के सवाल पर दो देशों- अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के बीच विवाद पैदा हो गया।

हुआ यह कि यह कबूतर अमेरिका से 13 हज़ार किमी की यात्रा तय कर पिछ्ले 26 दिसंबर को ऑस्ट्रेलिया की राजधानी मेलबॉर्न पहुंच गया। उसके पैर में बंधे नीले पट्टे के आधार पर निष्कर्ष निकाला गया कि यह वही कबूतर है, जो अक्टूबर में अमेरिका के ऑरेगोन में आयोजित कबूतरों के एक रेस से भाग निकला था।

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ऑस्ट्रेलिया की सरकार ने अपने देश के लिए जैविक खतरा मानकर उसे मार देने का फैसला किया है। इस फैसले की मुखालफत करते हुए अमेरिका के पिजन यूनियन ने दावा किया है कि ऑस्ट्रेलिया में मिला यह कबूतर ऑरेगोन के रेस से भाग निकले कबूतर से अलग है और उसके पैर से बंधा नीला पट्टा नकली। यह भी कि यह कबूतर ऑस्ट्रेलिया का ही है और इस मामले में अमेरिका को बेवजह घसीटा जा रहा है।

दिलचस्प यह है कि दो देशों के बीच इस विवाद का एक तीसरा पक्ष भी सामने आया है। यह पक्ष है मेलबोर्न के निवासी केविन सेलिबर्ड का। उन्होंने बताया है कि यह कबूतर जब उनकी छत पर उतरा था तो बेहद थका हुआ और  मरणासन्न था। कई दिनों तक दाना-पानी देकर उन्होंने उसकी जान बचाई थी। वह किसी के लिए खतरा हो ही नहीं सकता। उन्होंने अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया की सरकारों से मार्मिक अपील की है कि इस प्यारे पक्षी को मारने के बजाय उसके मालिक की खोज कर उसके हवाले कर दिया जाये।

कबूतर जो का भविष्य क्या होगा, यह तो हमें पता नहीं लेकिन हम दुआ यही करेंगे कि हम मनुष्यों की तरह सरहदों में बांधकर दुनिया के किसी भी पक्षी से उसका आसमान न छीना जाये !

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