इकतरफा प्यार में गिरफ्तार लोगों को काफी करीब से देखा है

0
126
इकतरफा प्यार में गिरफ्तार लोगों को अपने आस-पास करीब से देखा है और उनसे कभी सहानुभूति नहीं रही। गुस्सा, खीज और दुःख ही आया है उन पर।
इकतरफा प्यार में गिरफ्तार लोगों को अपने आस-पास करीब से देखा है और उनसे कभी सहानुभूति नहीं रही। गुस्सा, खीज और दुःख ही आया है उन पर।
  • पल्लवी प्रकाश
    पल्लवी प्रकाश

    पल्लवी प्रकाश

इकतरफा प्यार में गिरफ्तार लोगों को अपने आस-पास करीब से देखा है और उनसे कभी सहानुभूति नहीं रही। गुस्सा, खीज और दुःख ही आया है उन पर। ऐसा कहा जाता है कि गुरुदत्त का भी वहीदा रहमान के लिए वन साइडेड लव था, जिसकी दुखद परिणति उनकी आत्महत्या के रूप में हुई।

गोरख पाण्डेय के जेएनयू के दिनों के इकतरफा प्रेम पर उदयप्रकाश की कहानी प्रसिद्ध है ही। यह एक तरह की मानसिक बीमारी ही है, जिसमें मरीज को खुद ही पता नहीं होता कि वह कितनी बुरी तरह से बीमार है। कैम्पस के दिनों में ऐसी दो-तीन फ्रेंड्स थीं, जो इसी भ्रम में जी रही थीं। उन्हें कितना भी समझाओ, असर नहीं होता था। अगर उनका क्रश उन्हें इग्नोर कर रहा है या जवाब नहीं दे रहा तो वो इसमें भी तार्किकता ढूँढ़ लेती थीं। अज्ञेय की “मौन भी अभिव्यंजना है” की तरह।

- Advertisement -

यह भी पढ़ेंः कोरोना के बहाने बिदेेसिया की याद- अंखियां से दिन भर गिरे लोर ढर-ढर

एक बार हमारे हॉस्टल में आग लग गयी थी और हम सब बाहर निकल कर बैठे हुए थे। रात के करीब-करीब दो बजे थे शायद, और फायर ब्रिग्रेड वाले बिलकुल हिंदी फिल्मों के अंदाज में तब पहुंचे थे, जब आग स्टूडेंट्स ने बुझा दी थी। खैर, उस समय जब हम लोग जान बचने के लिए भाग कर बाहर आये और धुंएँ से खांस  रहे थे, तब मेरी फ्रेंड ने खांसते हुए उस लड़के का नाम लिया, जिसे वह इकतरफा प्यार करती थी कि वह कैसा है, सेफ़ तो है ना। मुझे उस समय उस पर रोना आ गया था।

यह भी पढ़ेंः कोरोना काल की डायरी- हर सुबह न जाने डराती क्यों है !

आमतौर पर जब हम सबसे ज्यादा निराश और दुखी होते हैं और लगता है कि अब जीवन खत्म हो गया तो उस व्यक्ति का चेहरा याद करना चाहते हैं, जो हमें सबसे प्रिय होता है। “राम की शक्तिपूजा” में जीवन संघर्ष से थके हुए राम की आँखों के सामने जानकी का चेहरा ही आता है। मेरी उस फ्रेंड को भी उस समय जब जीवन दांव पर लगा हुआ था, उस लड़के की याद आ रही थी, जो उसके लिए जरा भी फीलिंग्स नहीं रखता था। मेरा मन करता था कि चीख-चीख कर कहूँ कि जो तुम्हारे लिए कोई फीलिंग्स नहीं रखता, क्यों उसके पीछे खुद को बर्बाद कर रही हो। तुम्हारे सेल्फ़-रेस्पेक्ट से ज्यादा बड़ी कोई भी भावना कैसे हो सकती है। लेकिन समझाने का कोई फायदा नहीं था।

यह भी पढ़ेंः गांव छोड़ब नहीं, जंगल छोड़ब नहीं, मायं माटी छोड़ब नहीं..

अरसा हुआ, वे सभी दोस्त आज अपने-अपने घर-गृहस्थी में व्यस्त हैं, शायद अब उन्हें अपनी उन नादानियों पर शर्म भी आती होगी। लेकिन अब, एक टीचर के रूप में एकाध स्टूडेंट्स ऐसे मिल ही जाते हैं, जो इस बीमारी की गिरफ्त में हैं। कितना भी समझाओ, उन पर कोई असर नहीं होता। ऐसे लोगों के लिए गालिब का यह शेर याद आता है- मुहब्बत में नहीं है फर्क जीने और मरने का, उसी को देख कर जीते हैं, जिस काफिर पे दम निकले।

यह भी पढ़ेंः रेणु का उपन्यास ‘मैला आँचल’ जब चम्बल के डाकुओं तक पहुंचा

- Advertisement -