अनुबंध कर्मियों के लिए रघुवर जैसी ही साबित हुई हेमंत सोरेन सरकार

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झारखंड में हेमंत सोरेन की कुर्सी खतरे में पड़ गयी है. खदान आवंटन मामले में चुनाव आयोग ने उनसे स्पष्टीकरण मांगा है.
झारखंड में हेमंत सोरेन की कुर्सी खतरे में पड़ गयी है. खदान आवंटन मामले में चुनाव आयोग ने उनसे स्पष्टीकरण मांगा है.
  • विशद कुमार 

रांची। झारखंड अनुबंध कर्मचारी संघ का दावा है कि हेमंत सोरेन को मुख्यमंत्री बनाने में उनकी बड़ी भूमिका है। रघुवर सरकार को गिराने में भी भमिका कारगर रही। साथ ही यह आरोप भी लगाया है कि हेमंत सोरेन की सरकार उनकी मांगों के प्रति संवेदनशील नहीं है। कर्मटारी संघ ने एक विज्ञप्ति जारी कर कहा है कि 29 दिसंबर को झारखंड में झामुमोनीत गठबंधन सरकार की पहली वर्षगाँठ है। आज ही के दिन राज्य में विगत सरकार की विफलताओं, अनुबंध कर्मियों पर लाठीचार्ज, फर्जी मुकदमों में बिना वजह बर्खास्तगी, 11-13 जिला की दोहरी स्थानीयता, बेलगाम अफसरशाही, पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास का क्रूर व्यवहार जैसे कारणों से हेमंत सोरेन को कुर्सी मिली। झारखंड राज्य अनुबंध कर्मचारी महासंघ ने इस बड़े बदलाव में चाणक्य की भूमिका निभाई। महासंघ ने राज्य के 81 विधानसभा क्षेत्रों के 40 छोटे-बड़े अनुबंध कर्मचारी संघों के 6 लाख कर्मियों के  60 लाख परिवारों के वोट को गोलबंद कर एकमुश्त “वोट, वोटर नहीं, वोट बैंक है हम” के नारों के साथ वर्तमान सत्तारूढ़ दल के पक्ष में कर दिया। इसके पूर्व महासंघ ने राज्य के 7 विधानसभा क्षेत्रों- मधुपुर, बेरमो,  जामताड़ा  शिकारीपाड़ा, महगामा, रामगढ़ (जामा), टुंडी में विधानसभा सम्मेलन कर 20 हजार से ज्यादा प्रतिनिधि सम्मेलन के माध्यम से भीड़ जुटा कर सरकार को अपनी ताकत का एहसास करा दिया था।

अनुबंध कर्मियों के लिए रघुवर जैसी ही साबित हुई हेमंत सोरेन सरकार (फाइल फोटो)
अनुबंध कर्मियों के लिए रघुवर जैसी ही साबित हुई हेमंत सोरेन सरकार (फाइल फोटो)

झामुमो ने अनुबंध कर्मियों के वोट बैंक को पहचान कर अमित महतो पूर्व विधायक सिल्ली के आह्वान पर सभी अनुबंध कर्मियों के स्थायीकरण, समान काम, समान वेतन, भविष्य सुरक्षा, सेवा काल तक उम्र सीमा में छूट, रिक्त पदों में समायोजन और मानदेय विसंगति जैसे मुद्दों को सरकार बनने पर देने के वादे के साथ रांची में “संविदा संवाद” और दुमका में “सीधी बात, भावी मुख्यमंत्री के साथ” हेमन्त सोरेन की अध्यक्षता में अभियान चला कर एकजुट होने का संकल्प लिया। अनुबंध कर्मियों ने अपने वादे को पूरा किया। सरकार बनने के बाद पहली कैबिनेट की बैठक में अनुबंध कर्मचारियों को सरकार का रुख देख कर काफी खुशी हुई। मुख्यमंत्री के स्वतंत्रता दिवस के भाषण में भी उनकी मांगों के प्रति दृष्टिकोण स्पष्ट था। मगर जो विकास आयुक्त की अध्यक्षता में अनुबंध कर्मियों की सेवा शर्त सुधार और नियमितीकरण के लिए कमिटी बनी, उसमें एक भी अनुबंध कर्मी को शामिल न करके केवल नौकरशाहों की इस कमिटी से अनुबंध कर्मियों में निराशा शुरू हो गयी।

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अनुबंध कर्मियों के लिए रघुवर जैसी ही साबित हुई हेमंत सोरेन सरकार (फाइल फोटो)
अनुबंध कर्मियों के लिए रघुवर जैसी ही साबित हुई हेमंत सोरेन सरकार (फाइल फोटो)

अनुबंध कर्मियों को आशा थी कि तदर्थ कमिटी में महासंघ के विक्रांत ज्योति केंद्रीय अध्यक्ष, सुशील कुमार पांडेय केंद्रीय संयुक्त सचिव सहित 5 अनुबंध कर्मियों के लिए लम्बे समय तक संघर्षरत और पूर्व में रघुवर सरकार से प्रताड़ित लोगों को कमिटी में जगह दे कर तय समय -सीमा में राज्य के वर्षो से अल्प मानदेय भोगी कर्मियों को शुभ संकेत मिलेगा। लेकिन इस कमिटी के स्वरूप में समय सीमा, प्रपत्र का रूप को देखने से तो स्पष्ट लग रहा है कि सरकार अनुबंध कर्मियों के मुद्दे को सुलझाने के लिए नहीं, बल्कि तकनीकी अड़चन लगाकर उलझाने का काम कर रही है। वैसे भी उस कमिटी का कोई औचित्य ही नहीं है, जिसमें हित धारक कोई अनुबंध कर्मी न हो।

यह सच है कि कोरोना ने सरकार के द्वारा अनुबंध कर्मियों को दी गयी तय समय सीमा 3 माह में समस्या समाधान करने में बाधा पहुंचाई। आर्थिक मुद्दों पर बात बनने में हो सकता है थोड़ी परेशानी हो, मगर अनुबंध कर्मियों के लिये गैर आर्थिक मुद्दों- सेवा काल तक उम्र सीमा में छूट, भविष्य सुरक्षा, मृत अनुबंध कर्मियों के लिए मुआवजा पर तो साफ नीयत से कुछ किया जा सकता था। मगर उस पर भी कुछ नहीं हुआ। अनुबंध कर्मचारी महासंघ के अभिन्न अंग मनरेगा कर्मियों की 43 दिनों तक चली हड़ताल, एनएचआरएम कर्मियों की हड़ताल और कोरोना वॉरियर्स के रूप में सेवा, 332 e – ब्लॉक मैनेजर, सहायक पुलिस कर्मियों की हड़ताल, 14वें वित्त कर्मियों की समस्या जैसे मुद्दों पर सरकार के अधिकारियों का चरित्र और माननीयों की चुप्पी ने तो यह स्पष्ट  कर दिया कि सरकार में मुख्यमंत्री का चेहरा बदला है, व्यवस्था नहीं बदली है। पहले माननीय और अधिकारी दोनों गैर झारखंड के थे अबकी बार अधिकारी और उसका निर्णय दोनों गैर-झारखंडी लोगों के हित के लिए हो रहे हैं। अनुबंध कर्मी जंगल-झाड़-नदी के वासी मूलवासी झारखंडी हैं। इसलिए  बाहरी नौकरशाह इनके स्थायीकरण के मुद्दों पर खींच-तान कर तकनीकी अड़चन निकाल रहे हैं। इनकी नीयत साफ नहीं है।

वहीं झारखंड में बदलाव के मूल साथी पारा शिक्षक, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, एनआरएचएम और सोसायटी वर्करों को स्थायीकरण की प्रक्रिया से बाहर कर राज्य के 6 लाख अनुबंध कर्मियों के अंदर विद्रोह की चिनगारी सुलग रही है, जो न तो हेमंत सोरेन सरकार और न अनुबन्ध कर्मियों के सेहत के लिए ठीक है। हेमंत सोरेन सरकार अनुबन्ध कर्मियों के साथ लम्बे समय से संवाद बन्द कर अनुबन्ध कर्मियों के गुस्से में आग में घी डालने का काम कर रही है। काम में विलम्ब हो सकता है, मगर झारखण्ड राज्य अनुबंध कर्मचारियों के साथ संवाद में विलम्ब होने से राज्य में फिर अशान्ति का माहौल पैदा होगा। सरकार को याद रखना चाहिए कि ये वही अनुबंध कर्मी हैं, जिन्होंने रघुवर सरकार को चलना, सभा करना और सरकारी कार्यक्रम करने पर दम फुला दिये थे।

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यद्यपि इस एक साल में सरकार ने राज्य की जनता के लिए बहुत अच्छे कार्य किये हैं, मगर 6 th jpsc का रिजल्ट कोरोना काल में गलत तरीके से जारी करना, अति भ्रष्ट्राचारी अधिकारी गण की जिलों में पोस्टिंग से लोगों को असहज लग रहा है। नेक कार्य के लिए मुख्यमंत्री को हावर्ड विश्वविद्यालय में व्याख्यान के आमंत्रण मिलना राज्य के लिए गौरव की बात है। अनुबंध कर्मचारी महासंघ, झारखण्ड के संविदा संवाद की नकल बिहार में नौकरी संवाद के रूप में की गई है। हेमंत सोरेन यदि अनुबंध कर्मियों के मुद्दे को सही तरीके से सॉल्व कर देते तो पूरे देश में इनके जयकारे लगते। खैर, देखना है कि नए साल में सरकार झारखण्ड के अनुबन्ध कर्मियों के हितार्थ कौन सा फैसला लेती है?

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