अंग्रेजी हुकूमत खत्म हो गयी, पर भारत उसी ढर्रे पर चलता रहा

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अग्रेजी हुकूमत खत्म हो गयी। भारत को अपने ढंगा से सजने-संवरने और अपने नियम-कानून से देश चलाने का अवसर मिल गया। लेकिन हम उसी लीक पर चलते रहे।
अग्रेजी हुकूमत खत्म हो गयी। भारत को अपने ढंगा से सजने-संवरने और अपने नियम-कानून से देश चलाने का अवसर मिल गया। लेकिन हम उसी लीक पर चलते रहे।
  • हरे राम कात्यायन

अंग्रेजी हुकूमत खत्म हो गयी। भारत को अपने ढंगा से सजने-संवरने और अपने नियम-कानून से देश चलाने का अवसर मिल गया। लेकिन हम उसी लीक पर चलते रहे। जो अंग्रेजों ने बनाई थी। हमने अपना स्वदेशी ढर्रा विकसित नहीं किया। जिसे हम अंग्रेजी शासन कहते हैं और अंग्रेजों का अत्याचार कहते हैं उस समय भी अंग्रेज तो बहुत थोड़े से थे। वे हिंदुस्तानियों से हिंदुस्तानियों पर अत्याचार करवाते थे। जालियां वाला बाग मैं निहत्थे लोगों पर गोली चलाने वाले सैनिक हिंदुस्तानी सैनिक  ही थे। उनको हुकुम देने वाला अंग्रेज था।  धूर्त और लुटेरे अंग्रेज हिंदुस्तानियों को हिंदुस्तानियों के साथ उलझा कर  रखते थे। आजादी मिली या ट्रांसफर ऑफ पॉवर हुआ तो वही न्याय व्यवस्था, वही पुलिस व्यवस्था, वही शासन व्यवस्था, वही शिक्षा व्यवस्था हमने जारी  रखी। बहुत मामूली हेरफेर के साथ  वही आज भी वैसे ही चल रही है। अंग्रेज चले गए, लेकिन दमनकारी शासन व्यवस्था हमने विरासत में रख ली।

महात्मा गांधी ने जिस तरह से कहा था कि आजादी की लड़ाई लड़ने वाली कांग्रेस को अब भंग कर देना चाहिए, उनकी बात सही थी। अब  न तो शासन करने वाले धूर्त अंग्रेज रह गए थे, न उनके खिलाफ लड़ाई रह गई थी। और नहीं गरम दल, नरम दल की खींचातानी  वाली कांग्रेस की  जरूरत रह गई थी।  न उसकी प्रासंगिकता ही रह गई थी। न उसकी उपयोगिता रह गई थी। वह अपनी ऐतिहासिक भूमिका निभा चुकी थी, उसे रिटायर हो जाना चाहिए था। भंग कर दिया जाना चाहिए था।

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अंग्रेजी हुकूमत ने गरम दल का प्रतिनिधित्व करने वाले नेता जी को कांग्रेस से बाहर निकलवा कर देश से बाहर निकलवा कर नरम दल वाली अपनी पिट्ठू  कांग्रेस को ट्रांसफर आफ पावर किया था, मजबूरी में। तभी से  देश में ऐसे संगठनों की जरूरत थी, ऐसे आंदोलनों की जरूरत थी,  जो हमें भीतर से रूपांतरित कर सकें। भीतर से मजबूत बना सकें। अपने को रूपांतरित करने की आजादी का आंदोलन जारी रखना चाहिए था, लेकिन लाल किले पर झंडा फहरा कर ट्रांसफर ऑफ़ पॉवर को हमने आजादी समझ ली। हमने अंग्रेजी हुकूमत को स्वराज और  सुराज में बदलने की कभी कोई कोशिश नहीं की। उसी पिट्ठू कांग्रेस ने गांधी के स्वराज के मेनिफेस्टो दस्तावेज को, रामराज्य की अवधारणा को कूड़े की टोकरी में फेंक दिया। यह हमारी सबसे बड़ी भूल थी।

संविधान भी हमने अंग्रेजी हुकूमत की नकल करके बनाया। कॉमनवेल्थ के देशों के संविधानों की हूबहू नकल करके हम जिस सबसे बड़े लोकतंत्र होने के नाम का दावा करते हैं, वह आज तक लोक कल्याणकारी क्यों नहीं हो सका। यह प्रश्न पूछने से हम डरते हैं। क्या सुशासन किसी सुशासन बाबू के कुर्सी पर बैठने से आएगा या हम सब के भीतर के कर्तव्य बोध से, भारतीय भारत के नागरिक होने के कर्तव्य बोध से, धरतीपुत्र होने के  कर्तव्य बोध से, सच्चा ईमानदार होने  के इरादे से, इच्छा से, विश्व नागरिक होने  की  जिम्मेवारी और दायित्व बोध से, धरती और पर्यावरण से प्रेम से, उपजे कर्तव्य बोध से, सभी विभाजनकारी पहचानो से ऊपर उठ कर मनुष्य होने की भावना से आएगा।

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