- डी. कृष्ण राव
कोलकाता। बंगाल में सत्ता पक्ष की चुनाव आयोग में जब-जब शिकायतें बढ़ी हैं, तब तब सत्ता परिवर्तन हुआ हैष 2011 में ऐसा ही हुआ था और सत्ता बदल गयी थी। पश्चिम बंगाल में वाममोर्चा के 34 साल और उसके बाद तृणमूल कांग्रेस के 10 साल के शासन में हुए लगभग सभी चुनावों में एक बात कामन थी कि चुनाव खत्म होते ही विपक्षी पार्टियां चुनाव आयोग के दफ्तर जाकर वोट लूट, चुनावी हिंसा और कुछ बूथों में रिपोलिंग की मांग करती थीं। दूसरी ओर शाम 4:00 बजे के बाद सत्ताधारी दल शांतिपूर्ण तरीके से वोटिंग कराने के लिए चुनाव आयोग को धन्यवाद देते थे।
सन 2011 में तत्कालीन सत्ताधारी वाम मोर्चा के नेताओं ने सुबह से कई बार चुनाव आयोग के दफ्तर जाकर तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ बूथ लूटने व चुनाव में हिंसा कराने का आरोप लगाया था और उसी साल ममता बनर्जी ने बंगाल से 34 साल के वाममोर्चा के शासन को उखाड़ फेंका था।
इस बार भी स्थिति वैसी ही है। चुनाव आयोग में शिकायतें दर्ज कराने में इस बार तृणमूल कांग्रेस आगे है। दूसरे चरण के पहले ही आयोग के दफ्तर में शिकायतों का अंबार लगी है। अब तक 13,207 शिकायतें पहुंची हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान 13,118 शिकायतें दर्ज हुई थीं। दोनों ही बार शिकायतें दर्ज कराने के मामले में तृणमूल कांग्रेस आगे रही।
परिणाम के तौर पर देखें तो लोकसभा चुनाव में जब सर्वाधिक शिकायतें टीएमसी ने की थी तो बीजेपी ने 2 से अपनी सीटें 18 बढ़ा कर ली थीं। वाम शासन के पराभव के वक्त भी ऐसा ही हुआ था। इस बार भी सत्ता पक्ष की शिकायतें अधिक हैं। इसे अगर आधार मानें तो तृणमूल कांग्रेस परेशानी में दिख रही है।
ममता बनर्जी या उनकी पार्टी न सिर्फ शिकायतें चुनाव आयोग में दर्ज करा रही हैं, बल्कि चुनाव आयोग के खिलाफ भी कड़वे बोल बोल रही हैं। ममता ने कल ही कहा था कि बीजेपी एक हजार रुपये गैस के लिए और 200 रुपये खर्च के लिए वोटरों को दे रही हैं। ममता ने भाजपा पर कटाक्ष करते हुए कहा- नंदीग्राम से हिंसा और अशांति की खबरें आ रही हैं। प्रशासन निष्पक्ष चुनाव कराए। इसी क्रम में ममता ने कहा कि चुनाव आयोग सिर्फ भाजपा की दलाली कर रहा है।