बंगाल में ममता बनर्जी के लिए BJP से बड़ी चुनौती हैं प्रशांत किशोर

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पश्चिम बंगाल में होने जा रहे विधानसभा चुणाव में ममता बनर्जी के लिए बीजेपी से बड़ी चुनौती पीके उर्फ प्रशांत किशोर हैं।
पश्चिम बंगाल में होने जा रहे विधानसभा चुणाव में ममता बनर्जी के लिए बीजेपी से बड़ी चुनौती पीके उर्फ प्रशांत किशोर हैं।
  • डी. कृष्ण राव

कोलकाता। पश्चिम बंगाल में होने जा रहे विधानसभा चुणाव में ममता बनर्जी के लिए बीजेपी से बड़ी चुनौती पीके उर्फ प्रशांत किशोर हैं। 2019 में लोकसभा चुणाव में बीजेपी के जोरदार उभार के बाद ममता बनर्जी के भतीजे तृण मूल नेता अभिषेक बनर्जी ही प्रशांत किशोर को चुणावी रणनीतिकार के रुप में बंगाल लेकर आये थे।

समय जैसे-जैसे बीतता गया, पीके रणनीतिकार से पार्टी के नीति निर्धारक बन गए। केवल नीति निर्धारक ही नहीं, सलाहाकार के साथ बागी तृणमूल कांग्रेस के नेताओं-कार्यकर्ताओं का मनाने में उनकी भूमिका एक दलीय नेता के रूप में बन गयी है। आसन्न विधानसभा चुणाव और उसके परिणाम को लेकर भी वह बतौर नेता पार्टी की राय प्रेस के सामने रखने लगे हैं।

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आखिर ऐसा क्या हुआ कि पीके के आने के बाद से ही TMC की अंदरूनी गुटबाजी, आपसी कलह, मारपीट और बयानबाजी में बदल गयी। आखिर ऐसा क्यों हुआ कि पीके के आने के बाद अभी तक TMC की लोकप्रियता बढ़ने के बजाय घटती जा रही है। टीएमसी में नाराज होने वाले नेताओं की संख्या भी लगातार बढ़ती जा रही है। भाजपा दबने के बजाय उभरती जा रही है। पीके ने ममता की लोकप्रियता बढ़ाने के लिए कई तरह के नारे गढ़े और कार्यक्रम शुरू कराये, लेकिन उसका लाभ टीएमसी को नहीं मिल रहा है। दीदी के बोलो, बांगलार गर्व ममता, सोझा कथा व हाल में आये कार्यक्रम- दुआरे सरकार बेकार साबित हो रहे हैं।

इन योजनाओं को वास्तव में रूपायित करने के लिए TMC के निचले स्तर के नेताओं को मैदान में उतारा गया। इस कारण ब्लाक स्तर पर चार-चार गुट बन गये। आपसी लड़ाइ शुरु हो गयी। कई गुटों ने कार्यक्रमों को सही तरीके से लोगों तक पहुंचाने में रुचि ही नहीं दिखायी। दूसरा कारण दक्षिण में शुभेन्दु, उत्तर में गौतम देब और अणुब्रत मंडल जैसे नेताओं का प्रभाव कम होने लगा। पीके के लोग जहां-जहां पहुंच रहे, वहीं उन्हें मार खानी पड़ रही है। पीके ने जब से टिकट तय करना शुरु किया, तब से पार्टी में हलचल मच गयी।

इधर पीके की टीम ने जमीनी तौर पर यह पता कर लिया कि TMC में ऐसे कम ही नेता हैं, जिनके खिलाफ आर्थिक धांधली के आरोप नहीं हैं। इसकी पहचान हो जाने और टिकट कटने के भय से TMC मे भगदड़ शुरू हो गई। एक और कारण ने TMC को नुकसान किया है, वह है पीके का नीति निर्धारक बन जाना। इससे पार्टी के बड़े नेता, जो खुद को TMC में खुद को बौद्धिक नेता मानते थे, वे नाखुश हो गए हैं।

इधर अमित शाह समेत भाजपा के तमाम नेता अबकी बार 200 पार का नारा दे रहे हैं। ऐसी स्थिति में TMC की ओर से पीके को मैदान में उतरना पड़ा है। क्योंकि टीएमसी का दूसरा कोई नेता आगे नहीं आना चाहता। अब प्रशांत किशोर ने दावा किया है कि बीजेपी के दावे में वास्तविकता नहीं  है। पीके ने कहा- भाजपा को 99 से ज्यादा सीटें नहीं मिलेंगी। इसके लिए उन्होंने जो मुख्य तर्क दिया, वह यह कि भाजपा केवल 70 प्रतिशत सीटों पर मुकाबले में होगी। 9 बड़े जिलों में भाजपा की कोई पकड़ नहीं है। इनमें मिदनापुर, 24 परगना, मुर्शीदाबाद, मालदा शामिल हैं।

यह सच भी है कि बीजेपी 294 में से 220 सीटों पर ही टक्कर दे पाएगी। बाकी सीटों में 40 से 90 प्रतिशत तक मुसलमान हैं। भाजपा को उनका वोट कतई नहीं मिलेगा, लेकिन इन सीटों में कांग्रेस-माकपा गठबंधन को जरूर कई सीटें मिलेंगी। ओवैसी का संकट अलग है। इन सीटों में से आधा पर भी अगर मुकावला त्रिकोणीय होगा तो टीएमसी को काफी सीटें गवांनी पड़ सकती है। इधर किसी को यह भी पता नहीं है कि TMC में टूट-फूट का अंत कहां होगा। जिन 9 जिलों की बात की जा रही है, उसमें से मिदनापुर, 24 परगना का हाल काफी खराब है। बाकी बचे मुर्शिदाबाद, मालदा व पहाड़। लेकिन पहाड़ के लोग भी विमल गुरुंग से  खफा हैं। गुरुंग दीदी यानी ममता बनर्जी को कहां तक फायदा पहुंचा पाएंगे, पता नहीं।

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