पैंसठ वर्षीय पिता ने प्रोफेसर पुत्र को लिखा पत्र, दी ऐसी सलाह 

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कलकत्ता यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर रहे अमरनाथ ने अपने 65वें जन्मदिन पर बेटे के नाम पत्र लिखा है। बेटा हिमांशु भी प्रोफेसर हैं। पत्र में कई ऐसी सलाह उन्होंने बेटे को दी है, जो तकरीबन हर पिता की चिंता होती है। यह पत्र उन्होंने अपने फेसबुक वाल पर शेयर किया है। उन्होंने लिखा है-

आज मैने 65 साल पूरे कर लिए। इस अवसर पर मैं अपने लम्बे और ऊबड़-खाबड़ जीवन-पथ पर चलने से मिले अनुभव जन्य ज्ञान के कुछ अंश अपना फर्ज समझ कर अपने बड़े बेटे हिमांशु को, जो एक पिता भी है, बाँटना चाहता हूं। पत्र को सार्वजनिक इसलिए कर रहा हूं, ताकि उपभोक्तावाद और बाजारवाद के दौर में पले-बढ़े उस जैसे दूसरे अनेक माता-पिता भी इन सुझावों पर विचार कर सकें.

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प्रिय सोनू,

जीवन के सभी सुखों का मूल है निरोगी काया। अगर शरीर स्वस्थ है तो सुख ही सुख है और अगर शरीर रोगी है तो अरबों की सम्पत्ति भी किसी काम की नहीं। इसलिए हमारा पहला काम है शरीर को स्वस्थ रखना। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए कुछ नियम बने हैं। जल्दी सोना और जल्दी जग जाना। कम से कम एक घंटा नियमित व्यायाम करना। गरम, सादा और संतुलित भोजन करना तथा अच्छे विचार रखना। ये कुछ आदतें यदि हम डाल लें तो हमेशा स्वस्थ रहेंगे।

ये आदतें बचपन से डालनी पड़ती हैं। बाद में बहुत मुश्किल हो जाती है। एक बार बचपन में यदि ये आदतें पड़ गईं तो पूरा जीवन खुशियों से भरा रहेगा। मुझे यह देख कर दुख होता है कि तुम्हारी बेटियाँ देर से सोती हैं और देर से जगती हैं। अपने स्वास्थ्य के प्रति उनमें तनिक भी जागरूकता नहीं है।

शिक्षा का अनिवार्य और सबसे जरूरी हिस्सा स्वावलंबन है। यह शिक्षा घर में मिलती है। जीवन में कब कितने उतार-चढ़ाव आएंगे, कुछ भी नहीं कहा जा सकता। इसलिए, हर समझदार माता- पिता को चाहिए कि वे अपने बच्चों को हर तरह की परिस्थितियों से मुकाबला करने के योग्य बनाएं।  वैसे भी यदि स्वस्थ रहना है तो सबको भोजन पकाना आना ही चाहिए और भोजन पकाने में आनंद भी आना चाहिए।

यह आनंद तभी आएगा, जब बचपन से ही बच्चों में भोजन पकाने, घर के दैनिक जरूरी काम करने का संस्कार डाला जाए। भोजन का स्वाद और स्वास्थ्य तभी ठीक रह सकता है, जब भोजन अपने हाथों से बनाया जाये। तनु जितना समय मोबाइल, टैब या टी.वी. देखने में जाया करती है, उसका एक चौथाई समय भी घर के कामों और खाना बनाने में मदद करने में लगाए तो निश्चित रूप से उसको ये काम अच्छे लगने लगेंगे और उससे उसका भावी जीवन सुखद हो जाएगा।

तुम लोग अपनी बेटियों को बिना किसी झिझक के चाकलेट, कोल्ड ड्रिंक्स, आइस्क्रीम या कचौड़ियां, चिप्स आदि खिलाते रहते हो। मुझे यह देखकर दुख होता है। बच्चों से प्यार करने वालों को ऐसा नहीं करना चाहिए। इससे इन चीजों के स्वाद की इन्हें आदत पड़ जाएगी और उसकी लत आजीवन नहीं जाएगी। बचपन में जिस वस्तु के स्वाद का चस्का लगता है, वह जीवन भर नहीं जाता।

शिक्षा का पहला उद्देश्य अच्छा इन्सान बनाना होना चाहिए। तुम्हारी बेटियाँ शारीरिक और मानसिक दोनों रूपों में हर तरह से स्वस्थ हैं। उन्हें यदि सही मार्गदर्शन मिले तो वे सरोजिनी नायडू, एनी बीसेंट, इंदिरा गाँधी, किरण बेदी, कल्पना चावला- कुछ भी बन सकती हैं, किन्तु एक दिन जब मैने तनु से पूछा कि वह बड़ा होकर क्या बनना चाहती हैं तो उसने टेलीविजन की ‘ऐंकर’ बताया। मुझे बड़ी निराशा हुई, इसलिए नहीं कि ऐंकर होना बुरा है, इसलिए कि वह कितना छोटा सपना देख रही है। वैज्ञानिक अथवा डॉक्टर बताती तो भी गनीमत थी। यह हमारी परवरिश की कमी है कि बच्चे बड़े सपने भी नहीं देख पा रहे हैं।

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यह ठीक है कि बच्चों की शिक्षा और उनके संस्कार आदि के विषय में अब मेरी राय की जरूरत नहीं समझी जा रही है, फिर भी मैं अपनी प्यारी पोतियों की ठीक ढंग से परवरिश न होता देखकर अपने सुझाव देना अपना फर्ज समझता हूँ। इत्यलम्।

शुभकामनाओं सहित

तुम्हारा पिता

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