पांच रुपये में पटना में भोजन परोस रहीं पल्लवी और अमृता

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  • अनूप नारायण सिंह

पटना। कहते हैं कि इंसान अगर दिल में कुछ कर गुजरने की तमन्ना रखे तो तमाम मुश्किलों के बावजूद उसे मंजिल मिल ही जाती है। इस कहावत को वास्तविकता के धरातल पर सत्य सिद्ध कर दिखाया है पटना की दो साहसी महिलाओं अमृता सिंह एवं पल्लवी सिन्हा ने। नव अस्तित्व फाउंडेशन के माध्यम से बिहार जैसे बीमारू राज्य में महिलाओं के बीच महावारी जैसे विषयों को लेकर चर्चा के केंद्र बिंदु में आए अस्तित्व फाउंडेशन के संस्थापक अमृता और पल्लवी ने बिहार की राजधानी पटना में सीमित साधनों के बीच ₹5 वाली साईं की रसोई शुरू की है, जो बिना किसी सरकारी या गैर सरकारी सहयोग या सहायता के सफलतापूर्वक विगत 50 दिनों से संचालित ही नहीं हो रही, बल्कि सैकड़ों की तादाद में लोगों को भरपेट भोजन भी मुहैया करा रही है।

पटना के ओल्ड बायपास रोड भूतनाथ रोड के समीप साईं मंदिर कॉर्नर पर प्रतिदिन संध्या 7:00 बजे से लेकर 9:00 बजे तक साईं की रसोई लगती है, जहां लोग कतारबद्ध होकर अपनी बारी का इंतजार करते हैं। रिक्शा-ठेला चालकों से लेकर फुटपाथ पर रहने वाले लोग प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्र और राहगीर साईं की रसोई के नियमित ग्राहक बन चुके हैं।

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महज ₹5 की सहयोग राशि पर लोगों को लजीज व्यंजन परोसे जाते हैं। सातों दिनों का मेन्यू अलग-अलग है। किसी दिन खिचड़ी तो किसी दिन पूरी तो किसी दिन लोगों को पुलाव परोसा जाता है।  जिस दिन खाना पहुंचने में लेट हो जाता है, लोग टकटकी लगाए साईं की रसोई टीम का इंतजार करते हैं।

साईं की रसोई की शुरुआत 3 जून 2018 को अमृता सिंह, पल्लवी सिन्हा, अशोक कुमार वर्मा और बंटी जी के द्वारा की गई, जिसमें धीरे-धीरे लोग जुड़ते जा रहे हैं और एक बहुत बड़ी टीम अब इसका हिस्सा है। जिसमें राकेश शर्मा और अशोक शर्मा जी का निरंतर सहयोग  रहा है। रोज 5₹ में लोगों को गर्म, पौष्टिक, स्वादिष्ट और हर दिन अलग-अलग प्रकार का शुद्ध भोजन उपलब्ध कराना साईं की रसोई का मुख्य मकसद है। आज इस रसोई के चालू हुए करीब तीन महीने होने को हैं। आशा है कि यह रसोई लगातार चलती रहेगी।

महज हौसले के बल पर उड़ान भर गई सबकी रसोई बाजारवाद के दौर से गुजर रहे समाज को आशा की एक नई किरण भी दिखा रही है। ₹5 की सहयोग राशि देने के सवाल पर पल्लवी करती हैं कि लोगों को यह महसूस नहीं होगा कि उन्हें मुफ्त में खाना दिया जा रहा है। इसलिए ₹5 की सहयोग राशि दी जाती है। अपनी भावी योजनाओं के बारे में अमृता बताती हैं कि बिहार के सबसे बड़े सरकारी हॉस्पिटल पीएमसीएच में भी साई की रसोई शुरू करने की तैयारी चल रही साधन सीमित है, बस हौसला है कि कुछ नया करना है। समाज के एक तबके का सहयोग निरंतर नहीं मिल रहा है। बिना किसी प्रचार प्रसार के साईं की रसोई समाज सेवा के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित हो रही है।

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