- सुरेंद्र किशोर
दीया जलाओ कार्यक्रम में जन-जन की हुई सहभागिता के जरिए इस देश के आम लोगों ने एक बार फिर एक बड़ा संकेत दे दिया है। वह संकेत यह है कि जब भी देश पर संकट आएगा, कुछ अपवादों को छोड़कर हम साथ-साथ हैं।
ऐसा ही जज्बा देश के लोगों ने सन 1962 और सन 1971 के युद्धों के समय भी दिखाया था। जो लोग कल की एकजुटता को हिन्दू राष्ट्रवाद का नाम दे रहे हैं, वे या तो अनजान हैं या बेईमान। या फिर राजनीति से प्रेरित हैं। 1971 के बंगलादेश युद्ध के समय जब दक्षिण भारत के एक कांग्रेस सदस्य ने संसद में इंदिरा गांधी को ‘दुर्गा’ कह दिया, तब जब ‘अंध हिन्दू राष्ट्रवाद’ नहीं हुआ, तो आज कैसे हो गया?
किसी नेता को प्रधानमंत्री भी जनताही बनाती है। इस देश की अधिकतर जनता अपढ़ और अधपढ़ भले ही हो, पर विवेकवान जरूर है। वह आमतौर पर सही राजनीतिक निर्णय करती रही है। दीया जलाओ कार्यक्रम के जरिए यह भी साबित हो गया कि 1962 और 1971 वाले देशप्रेम का जज्बा आज भी बरकरार है। यह कोई हिन्दू भावना नहीं है।
युद्ध की स्थिति में किसी भी देश में ऐसी भावना पैदा होती ही है। पर वहां के लोग उसे ‘ईसाई भावना’- अमेरिका-, हान भावना- चीन-या ‘बौद्ध भावना’- जापान नहीं कहते। दीया जलाओ कार्यक्रम की व्यापक सफलता से मौजूदा सरकार को यह भी संकेत मिल गया कि कोरोना क्या है, इससे भी बड़े किसी संकट की घड़ी में हम सरकार के साथ रहेंगे, चाहे मोदी की सरकार रहे या किसी और की। देश के भीतर और बाहर जितने दुश्मन हमारे खिलाफ आज सक्रिय हैं, उतने इससे पहले कभी नहीं थे। इसलिए आने वाले दिनों में कोरोना से भी किसी बड़े संकट के मुकाबले के लिए देश को हमेशा ही तैयार रहना ही होगा।
कहीं दीप जले, कहीं दिल वाली मनोवृत्ति से ऊपर उठिए!
इस देश के अनेक लोगों के लिए कोरोना वायरस से अधिक बड़ी विपत्ति नरेंद्र मोदी है। जनता कफ्र्यू, लाकडाउन और दीया ज्वलन कार्यक्रमों की सफलता के बाद अनेक लोग जल-भुन गए हैं। साथ ही, लगता है कि यह बात भी अनेक लोगों को सालती रही कि कोरोना का प्रतिकूल असर भारत पर अन्य अनेक विकसित देशों की अपेक्षा कम पड़ा।
पर, मोदी विरोधियो, मोदी तो आपके ही कारण आया है। यदि चाहिएगा तो आपके ही कारण चला भी जाएगा। पर उसके लिए आपको अपनी कार्यनीति बदलनी पड़ेगी। हालांकि ऐसी उम्मीद तो नहीं है कि आपकी कार्य नीति बदलेगी। कोई संकेत भी नहीं है। पर कोशिश कर के देखिए! देश के लिए सही रहेगा। आम लोगों के लिए मोदी का अभी कोई विकल्प दूर-दूर तक नजर नहीं आता। आप उसे नीच, गंवार और न जाने क्या -क्या कहते रहिए। कोई फर्क नहीं पड़ता, बल्कि उन उक्तियों से उसके प्रति लोगों की सहानुभूति ही बढ़ती है।
अब यह जानिए कि आपके कारण कैसे मोदी आया
अब यह जानिए कि आपके कारण कैसे मोदी आया। दरअसल मतदाता भ्रष्टाचार-महा घोटालों आदि से ऊब गए थे। भ्रष्टाचार के कोढ़ में मुस्लिम तुष्टीकरण की खाज ने मोदी को केंद्र की सत्ता में ला दिया। ए.के. एंटोनी ने भी सन् 2014 में अपनी रिपोर्ट में यही कहा था। 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद सोनिया गांधी ने एंटोनी से कहा था कि आप चुनाव में कांग्रेस की हार के कारणों पर रपट बनाइए।
एंटोनी ने रपट बनाई। सोनिया जी को दे दी। उसमें अन्य कारणों के साथ-साथ यह भी लिखा गया था कि मतदाताओं को, हमारी पार्टी अल्पसंख्यक की तरफ झुकी हुई लगी, जिसका हमें नुकसान हुआ। पर कांग्रेस हाईकमान ने एंटोनी की इस बात को नजरअंदाज कर दिया। यह बात कुछ अन्य दलों पर भी लागू होती है।
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एंटोनी ने जो बातें नहीं कहीं, महा घोटाले व वंशवाद वाली बातें, वह सब भी मतदाता जानते ही थे। आम मुसलमानों के लिए कांग्रेस ने जरूरी कल्याणकारी काम किए होते तो किसी को एतराज नहीं था। पर वह और अन्य अनेक मोदी विरोधी दल व बुद्धिजीवी तो लगातार उनके बचाव व समर्थन में लगे रहे, जो मुसलमानों के बीच के अतिवादी हैं। आज भी वही हो रहा है।
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जले-भुने लोगों को राहत कैसे मिले, इसका भी उपाय है
अब आखिर जले-भुने लोगों को राहत कैसे मिलेगी? मैं उपाय बताता हूं। मोदी विरोधी लोग ऐसी कोशिश करें, ताकि मतदातागण आपको मोदी जमात की अपेक्षा कम भ्रष्ट मानने लगें। साथ ही, आप अतिवादियों से दोस्ती छोड़कर देश को जेहादी खतरों से बचाने की कोशिश में लग जाएं। इन खतरों से जूझने की यदि एकमात्र जिम्मेदारी मोदी जमात की ही रहेगी तो वोट भी उसी को मिलेंगे। स्वतंत्र भारत का चुनावी इतिहास बताता है कि मतदाता हर बार बदतर को छोड़ कर बेहतर को सत्ता में पहुंचा देते हैं। अपवादों की बात और है। ‘बेस्ट’ यानी 24 कैरेट का सोना तो कोई है नहीं- न मैं, न आप, न कोई दल। इसलिए कहीं दीप जले, कहीं दिल वाली मनोवृत्ति छोड़िए और देश के प्रति सकारात्मक सोच में डूब जाइए। शायद आपके लिए कोई राह निकल जाए। प्रतिपक्ष मजबूत रहेगा तो लोकतंत्र भी पटरी पर रहेगा।
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