पटना। एनडीए को मिल रहे जनसमर्थन से वंशवादी पार्टियों में हडकंप मचा है। यह मानना है बिहार भाजपा के प्रवक्ता और पूर्व विधायक राजीव रंजन का। उन्होंने विरोधियों को निशाने पर लेते हुए कहा कि हालिया लोकसभा चुनाव में एनडीए को मिले अभूतपूर्व जनादेश ने विपक्ष, विशेषकर वंशवादी दलों की नींद उड़ा कर रख दी है। इनके खेमे में आज जबरदस्त भगदड़ मची हुई है। राजद हो या कांग्रेस, दोनों दलों के नेता आज एक स्वर से पार्टी में व्याप्त वंशवाद को अपनी हार का कारण बताते हुए पार्टी नेतृत्व पर सवाल खड़े कर रहे हैं।
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उन्होंने कहा कि दरअसल इनके नेताओं ने पार्टी को अपनी जागीर और जनता को अपना गुलाम समझा हुआ था। 2014 में मिली करारी हार ने इनके माथे पर बल डाला था, लेकिन इन चुनावों ने उनका जोश पूरी तरह ठंडा कर दिया है। इन चुनावों में जनता ने यह साफ़ कर दिया कि उसे ‘सबका साथ-सबका विकास’ पसंद है, न कि ‘परिवार का साथ-परिवार का विकास’। आम जनता की भावना से पूरी तरह कटे इन दलों की स्थिति आज यह है कि बीजेपी के मिले इतने प्रचंड जनादेश को ये पचा तक नहीं पा रहे हैं।
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आत्मचिंतन करने के बजाय इन दलों के नेता कहीं ऊलजलूल बयान दे रहे हैं, तो कहीं कोई इस्तीफे की बात कर रहा है। कई पार्टियों का तो अस्तित्व ही संकट में आ गया है। ये दल समझ लें कि जनता की भावनाओं को नजरअंदाज कर, उन्हें जात-पात में उलझा कर सत्ता पाने के दिन अब लद चुके हैं। अगर इन्हें अपनी राजनीति बचानी है तो उन्हें नमो-नीतीश द्वारा चलाए जा रहे विकास कार्यों में सहयोग करना ही होगा।
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श्री रंजन ने आगे कहा कि विपक्षी दलों में मची इस भगदड़ में सबसे ज्यादा हास्यास्पद स्थिति कांग्रेस की है। सबसे पहले इसके अध्यक्ष ने अपना इस्तीफा देने की सियासी नौटंकी की, बाद में पार्टी के तीन कद्दावर नेताओं पर वंशवाद के आरोप मढ़े। हालाँकि वह खुद यह भूल गए कि भारतीय राजनीति में वंशवाद उन्हीं के परिवार की देन है और राजनीति में उनका खुद का वजूद भी वंशवाद के ही कारण है। उनके बयानों से यह साफ़ है कि दूसरे दल भले ही थोड़ा-बहुत सुधार कर लें, लेकिन कांग्रेस नही बदलने वाली।
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