कोलकाता से सटे दक्षिण 24 परगना की 3 सीटों का जानें क्या है हाल

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बंगाल विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद दो दिनों से हिंसा का दौर आज भी जारी रहा। इस हिंसा में अब तक भाजपा समर्थक 6 लोगों की जान जा चुकी है।
बंगाल विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद दो दिनों से हिंसा का दौर आज भी जारी रहा। इस हिंसा में अब तक भाजपा समर्थक 6 लोगों की जान जा चुकी है।
  • डी. कृष्ण राव

कोलकाता। कोलकाता महानगर से सटे दक्षिण 24 परगना जिले के 3 विधानसभा क्षेत्र आते हैं, जहां कोलकाता महानगर के साथ ग्रामीण प्रभाव भी साफ दिखता है। ये 3 क्षेत्र हैं- महेशतला, बजबज और मेटियाबुर्ज। इन तीनों सीटों पर टीएमसी का कब्जा रहा है। 2019 के लोकसभा चुनाव में भी इन सीटों पर टीमसी को बढ़त मिली थी। मतदान 10 अप्रैल को होना है। टटोलते हैं इन सीटों पर क्या है मतदाताओं का मिजाज और क्या हैं चुनाव के मुद्दे।

यहां भी पूरे राज्य की तरह कट मनी और सिंडिकेट के अलावा सबसे बड़ा मुद्दा है नगर विकास के लिए पेड़ों की कटाई और जलाशयों को भर कर बन रहे फ्लैट। स्थानीय लोगों का कहना है कि जहां-तहां इस फ्लैट कल्चर से दक्षिण 24 परगना के इन इलाकों में  बुरी तरह प्रदूषण फैल रहा है। इसके अलावा कोलकाता से जुड़े होने के कारण नगर निगम से मिलने वाली नागरिक सुविधाएं भी लोगों को ठीक तरह नहीं मिल रही हैं।

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इन सारे मुद्दों पर बातचीत करते-करते हम नवाब  वाजिद अली शाह के शहर मेटियाबुर्ज पहुंचे। छोटी-छोटी गलियां, जहां मशीनों पर लाइन से होलसेल के कपड़े सिल रहे। मुंह में गुटखा  चबाते एक छोटी गली से निकल कर आए सज्जाद  का कहना था कि बिजनेस तो पहले नोटबंदी ने चौपट कर दिया, बाद में जीएसटी ने। इलाके में तृणमूल का प्रभाव है, लेकिन  अब्बास सिद्दीकी की पार्टी भी कुछ प्रभाव डालती दिखी।

अभिषेक बनर्जी के लंबे एक कटआउट के सामने खड़े होकर यहां के तृणमूल उम्मीदवार अब्दुल खालेक मोल्ला का कहना था कि पिछले लोकसभा चुनाव में यहां से अभिषेक  बंद्योपाध्याय को 80000 की  लीड मिली थी। इस बार लीड बढ़ाना ही  चैलेंज है। यहां से संयुक्त मोर्चा के उम्मीदवार नूर जमाल  मोल्ला का कहना था कि यहां इस बार तृणमूल के लिए काफी कठिन लड़ाई होगी, क्योंकि अब्बास सिद्दीकी का काफी असर है।

भाजपा उम्मीदवार रामजीत प्रसाद का कहना है- यहां बंगाली मुसलमान नहीं, बल्कि उर्दू भाषी बिहार-यूपी के मुसलमान रहते हैं। इन मुसलमानों में भाईजान का कोई प्रभाव नहीं है। असल में यहां काम तो हुआ नहीं, लेकिन लोग स्वास्थ्य, शिक्षा और बुनियादी सुविधाओं को देखते हुए वोट देंगे।

यहां से निकलते-निकलते एक बात दिमाग में आयी कि एक समय राजा प्रतापादित्य का शहर कैसे धीरे-धीरे नवाब वाजिद अली शाह का शहर बन गया, पता ही नहीं चला। यहां का सबसे बड़ा एक्सफेक्टर है, यहां की लगभग 80% मुसलमानों की आबादी। लगता नहीं है कि दीदी को छोड़कर ये  कहीं और जाएंगे।

कोलकाता महानगर के अंदर अगर एकमात्र ग्रामीण विधानसभा केंद्र है तो उसका नाम है  बजबज। पूरे बजबज विधानसभा क्षेत्र में 10 ग्राम पंचायतें और दो नगर निगम शामिल हैं। स्थानीय टोटो (ई-रिक्शा) चालक विकास का कहना है कि लंबे वक्त से यहां के लोग अपने मताधिकार का प्रयोग नहीं कर पाए। लोग छटपट कर रहे हैं अपने मताधिकार के प्रयोग के लिए। 2016 का विधानसभा चुनाव हो या 2018 का पंचायत चुनाव, लोगों को  मतदान केंद्रों तक पहुंचने नहीं दिया गया। वही गुस्सा इस बार लोग इस चुनाव में मौका मिला तो ईवीएम में बटन दबाकर उतार सकते हैं। इस विधानसभा क्षेत्र से इस बार तृणमूल कांग्रेस के अशोक देव को टिकट मिला है। पिछले पांच बार के विधायक रहे देव ने यहां चल रहे एक रोड शो के दौरान बताया कि  इस बार भी उनकी जीत लगभग तय है। स्थानीय एक चाय दुकानदार ने अपना नाम बताने से इनकार करते हुए कहा- बाबू, इस बार का लड़ाई तृणमूल कांग्रेस के साथ तृणमूल कांग्रेस की ही होगी। क्यों ऐसा कह रहे हैं, पूछने पर कहा- कुछ काम तो हुआ है, लेकिन स्थानीय नेताओं की दादागीरी और अहंकार दीदी को ले डूबने के लिए काफी है। स्थानीय बीजेपी उम्मीदवार चिकित्सक तरुण  आदक का कहना है कि 2016 में यहां अशोक देव ने कांग्रेस के उम्मीदवार को केवल 7000 मतों से हराया था, लेकिन 2019 में बजबज विधानसभा क्षेत्र में  तृणमूल कांग्रेस का उम्मीदवार भाजपा से उतने ही मतों से पीछे रहा था। उनका यह भी कहना है कि 2018 के पंचायत चुनाव में यहां के 10 ग्राम पंचायत क्षेत्रों में लोगों को डरा-धमका कर वोट देने से रोका गया। इसके अलावा यहां के पूजालिया और बजबज नगर निगम का समय पूरा हो जाने पर भी चुनाव नहीं  कराया गया।

बजबज से निकल कर ब्रिज के इस पार से उस पार पहुंचते ही दक्षिण 24 परगना के अन्य एक विधानसभा क्षेत्र महेशतला है। यहां का सबसे बड़ा मुद्दा  है तृणमूल नेताओं की दादागीरी और तोलाबाजी। इसके अलावा यहां पीने के पानी की किल्लत और जलजमाव दोनों ही सबसे बड़ा मुद्दा हैं। इलाके के एक ऑटो चालक गुड्डू का कहना है कि यहां सत्ताधारी पार्टी की दादागीरी सबसे बड़ा मुद्दा है। वर्षा के बाद भी यहां  4 महीना तक सड़क पर पानी जमा  रहता है। स्थानीय लोग गुंडागर्दी और दादागीरी के चलते इसके खिलाफ एक शब्द बोल नहीं सकते। पीने का पानी लगभग हर घर में लोग खरीद कर मंगाते हैं। नगर निगम होने के बावजूद नगर निगम की कोई सुविधा यहां उपलब्ध नहीं है। 2016 में यहां से तृणमूल की उम्मीदवार कस्तूरी दास चुनाव जीतीं, लेकिन उनकी मृत्यु के बाद उनके पति दुलाल दास 2018 के उपचुनाव में सीपीएम को हराकर यहां के विधायक बने थे।

इसके अलावा स्थानीय नगर निगम के चेयरमैन भी है दुलाल दास। फोन पर उनसे बात हुई। उन्होंने बताया कि यहां पानी जमने का थोड़ा प्रॉब्लम है। चुनाव में जीतते ही इस असुविधा को खत्म कर दिया जाएगा। इसके अलावा उन्होंने बताया कि महेशतला के लोग भाजपा को हराने के लिए उत्सुक हैं। दूसरी ओर यहां के भाजपा उम्मीदवार उमेश दास का कहना है कि यहां के लोग दुलाल दास की दादागीरी के चलते कुछ नहीं बोल पाते। पिछले कई चुनावों में यहां तक कि 2019 के लोकसभा चुनाव में भी लोगों को वोट डालने नहीं दिया गया। अगर इस बार लोग मतदान केंद्र तक पहुंच पाते हैं तो परिवर्तन कर देंगे। यहां से संयुक्त मोर्चा के उम्मीदवार प्रभात चौधरी का कहना है कि इस इलाके में एक अच्छा अस्पताल भी नहीं है। लोगों को रात में अगर कुछ होता है तो कोलकाता दौड़ना पड़ता है।

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