SC/ST मुद्दे पर विपक्ष को धकिया कर आगे निकल गयी भाजपा

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  • डा. राजेंद्र

2019 की तस्वीर कुछ-कुछ साफ होने लगी है। सुप्रीम कोर्ट ने अचानक ही एससी-एसटी ऐक्ट के विरुद्ध फैसला नहीं सुना दिया था! अपने आक़ाओं के इशारे पर ही उक्त फैसला लिया गया था, ताकि बीजेपी को इसी के आधार पर 2019 के चुनाव में घेरा जा सके। एक बी प्लान भी था, जो अंततः कामयाब रहा।

भाजपा प्लान ए को तो समझ गई और विपक्ष से एससी-एसटी वाला मुद्दा छीन लिया, किन्तु विपक्ष के प्लान बी में वह फँस गई। बड़ी चतुराई से कांग्रेस के मीडिया सेल द्वारा सवर्णों को बीजेपी के विरुद्ध भड़काया गया और अखिल भारतीय स्तर पर सवर्णों, ख़ासकर ब्राह्मणों को इसके लिए तैयार किया गया। क्षत्रिय तो कांग्रेस के झाँसे में नहीं आए, किन्तु ब्राह्मण कांग्रेस के जाल में फँस गए और भाजपा के विरुद्ध उन्होंने नोटा की वकालत शुरू कर दी, जिसका सीधा फ़ायदा कांग्रेस को मिलेगा।

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ब्राह्मणों का गुस्सा भी निकलेगा और कांग्रेस को वोट न देकर भी वे लोग प्रकारांतर से कांग्रेस को ही लाभ पहुँचाएँगे। इसका एक फायदा बीजेपी को यह मिला कि एससी-एसटी ऐक्ट के विरुद्ध विपक्ष की धार कुंद हो गई। दलित और पिछड़े वर्ग के लोग बीजेपी को अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानने से बचने लगे हैं। मायावती ने अपना तेवर यूँ ही नहीं दिखाना शुरू किया है! दलितों के ऊपर सबसे अधिक अत्याचार पिछड़े वर्ग के ख़ासकर यादवों ने किया है, जिसकी अगुवाई मुलायम, अखिलेश और लालू आदि करते रहे हैं। मायावती को गेस्ट हाउस कांड अभी भी याद आता होगा, जिसमें उनकी जान संघ के एक कार्यकर्ता ने ही बचाई थी।

सवर्णों के कारण शायद भाजपा को कुछ सीटों का नुकसान हो जाए और तब मायावती एनडीए के साथ जाने में संकोच नहीं करेंगी, क्योंकि भाजपा ने सवर्णों के वोटबैंक की परवाह न करते हुए अपना दलित कार्ड चला था। मायावती के समर्थक उनके एनडीए में जाने का विरोध नहीं करेंगे। यदि यूपीए बहुमत के करीब पहुँच गई, तब भी मायावती अपनी दख़ल बढ़ा पाएँगी। अतः 2019 में सत्ता की चाभी मायावती के आसपास रह सकती है।

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यदि ममता के नेतृत्व में कोई अलग मोर्चा बना तो उसमें भी मायावती फिट बैठ सकेंगी। दक्षिण में जयललिता और करुणानिधि के जाने से जो रिक्तता आई है उसका कुछ लाभ भाजपा पाने की कोशिश जरूर कर लेगी जो यूपी, बिहार, एमपी आदि के नुकसान की भरपाई कर सकेगा, ऐसी अमित शाह को उम्मीद है। विपक्ष करो या मरो की रणनीति के साथ मैदान में है, ख़ासकर कांग्रेस और वामदल! ममता या मायावती को यह बात पसंद नहीं है क्योंकि पीएम पद की लालसा दोनों को है। वे कांग्रेस या वामदलों को बहुत शक्तिशाली होता हुआ नहीं देखना चाहेंगी। ममता विद्रोही तो हैं और मोदी विरोध ही उनकी राजनीति की धुरी और मजबूरी दोनों है किंतु वे राहुल को पीएम के पद पर नहीं देखना चाहेंगी। भले ही उन्हें पिछले दरवाजे से मोदी को स्वीकार कर लेना पड़े। मायावती की भी यही स्थिति होगी। बिहार का मामला सलट चुका है और नीतीश जी राज्यसभा में अपने सांसद को उपसभापति बनवाकर गदगद हैं। सीटों का समझौता भी हो ही चुका है और बिहार की गद्दी से उन्हें संतोष भी है। सीएन राव और चंद्रबाबू नायडू अब हाशिए पर जा चुके हैं। शरद पवार और शरद यादव कोई बड़ी भूमिका निभाते हुए नहीं दिख रहे हैं। वामदल आपसी भितरघात से जूझ रहे हैं। येचुरी और करात में तालमेल नहीं है। उनके पास अब कोई करिश्माई नेता भी नहीं रहा।

अतः कुल मिलाकर 2019 का चुनाव दिलचस्प होने वाला है। भारत के मध्यवर्गीय वोटर आज भी मोदी को पसंद करते हैं और गुजरात से मोदी को उखाड़ पाना कांग्रेस के लिए उतना आसान नहीं है। मेरी पहली पसंद मोदी हैं किंतु यदि राहुल की बारी आई तो मुझे ममता राहुल से बेहतर पीएम के रूप में स्वीकार्य होंगी। देखें जनता जनार्दन क्या फैसला करती है।

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