भाजपा को मिल गया एक और भावनात्मक मुद्दा

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जम्मू-कश्मीर में भाजपा का पीडीपी से गठबंधन तोड़ना उचित फैसला है। इसके पीछे 2019 का चुनाव वजह हो या बेकाबू सिरफिरों के साथ सख्ती का इरादा; पर भाजपा द्वारा सही समय पर उठाया गया यह सही कदम है। महबूबा कहती हैं कि  पत्थरबाज युवाओं पर दर्ज मुकदमे वापस कराने की उनकी रणनीति कारगर रही। धारा 370 पर चर्चा को ठंडे बस्ते में डालने की अपनी चाल में वह कामयाब रहीं।

भाजपा ने जम्मू और पीडीपी ने कश्मीर जीता था। भाजपा भारत में अखंड राज के लिए बेताब थी। महबूबा की चाल समझे बगैर भाजपा हड़बड़ी में गड़बड़ी कर फंस गयी थी। भाजपा की इतनी किरकिरी हो रही थी कि वह बस इसी इंतजार में थी कि महबूबा का साथ कैसे छूटे। इसके लिए अनुकूल वक्त उसने चुन लिया है। सीज फायर भी उसकी रणनीति का हिस्सा हो सकता है।

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2016 से जल रही घाटी में अभी सख्त रुख अपना कर भाजपा 2019 के लिए एक भावनात्मक मुद्दा जुटा चुकी है। वर्षों से सुलगते कश्मीर की आग को और भड़काने से भाजपा को ही फायदा होगा। शह-मात का यह खेल है। सबके अपने तीर तुक्के हैं। भाजपा ने कहा कि वह मुफ्ती को झेल रही थी। महबूबा ने बगैर किसी अफसोस के कह दिया कि उन्हें साथ छूटने का कोई गम नहीं है। वह कश्मीर के हितों को साधने में सफल रही है।

भाजपा की सर्वाधिक किरकिरी इस बात को लेकर हो रही थी कि पाकिस्तान समर्थित आतंकियों और उनको पनाह देने वालों पर तनिक भी काबू नहीं पाया जा सका। एक बार पत्थरबाजी का जो चलन शुरू हुआ, वह तमाम सख्ती के बावजूद अब भी जारी है। देश कश्मीर में मारे जा रहे सुरक्षा बलों को लेकर उबाल में था।

भाजपा भावनाओं को भुनाने में माहिर है। राममंदिर के राग अलापते दो सीटों से वह तिहाई अंक में पहुंच गयी। कभी दादरी तो कभी कैराना के मुद्दे उछाल कर वह अपने वोटरों को एकजुट करने में कामयाब रही है। संभव है कि भाजपा कश्मीर और आतंकवाद विरोध के मुद्दे पर अगले चुनाव में उतरे।  पर, यह पक्का है कि कश्मीर में हालात अभी नहीं सुधरेंगे। यानी तमाम दलों की कूटनीतिक कवायद का हासिल शून्य ही रहेगा।

  • दीपक कुमार
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