- ओमप्रकाश अश्क
रांची। हेमंत सोरेन सीमित संसाधनों में कोरोना संकट का सामना बड़ी शिद्दत से कर रहे हैं। बिना किसी आरोप-प्रत्यारोप के महामारी से जूझ रहे हैं। उनके मंत्री कई बार केंद्र सरकार के खिलाफ असहयोग का आरोप भी लगा देते हैं, लेकिन हेमंत बहैसियत मुख्यमंत्री कभी को शिकवा-शिकायत नहीं करते। उन्हें भी केंद्र की मदद की जरूरत है, पर कभी इसके लिए केंद्र को कोसते नहीं। लाक डाउन में लोगों की परेशानी को ध्यान में रख कर उन्होंने मुफ्त दाल-भात केंद्रों की व्यवस्था करायी है। उनका एक ही मकसद है कि संकट की इस घड़ी में झारखंड का कोई गरीब भूख से न मरे।
हेमंत कोरोना महामारी की रोकथाम के लिए केंद्र सरकार द्वारा घोषित लाक डाउन का भी पालन करने में भी कहीं से चूक नहीं रहे। जब उन्हें एहसास हुआ कि कोरोना से सर्वाधिक प्रभावित रांची के हिंदपीढ़ी इलाके में लाक डाउन का पालन कराना झारखंड पुलिस के बूते की बात नहीं तो उन्होंने बेहिचक केंद्रीय सुरक्षा वाहिनी (सीआरपीएफ) की तैनाती में भी संकोच नहीं किया। इसके लिए विपक्षी कह सकते हैं कि उनकी झारखंड पुलिस नाकाम रही। लेकिन सच कहें तो हेमंत की बेलौस कार्यशैली का यह अंदाज है।
उनका शासन कैसा होगा, इसका एहसास तो उन्होंने उसी दिन करा दिया था, जब भाजपा को शिकस्त देकर मुख्यमंत्री बनते ही उन्होंने प्रधानमंत्री से मिल कर केंद्र सरकार के साथ तालमेल से सरकार चलाने का भरोसा दिया। राष्ट्रपति से मिल कर उन्होंने सरकार के सौहार्द का परिचय दिया। यह अलग बात है कि इसके बावजूद केंद्र से झारखंड को अपेक्षित सहयोग नहीं मिल रहा। खाली खजाने के साथ सत्ता संभालने वाले हेमंत ने जीएसटी और रायल्टी के हिस्से की बकाया रकम कई बार मांगी। लेकिन केंद्र सरकार ने उनकी बात अब तक अनुसुनी ही रखी है।
कोरोना काल में भी केंद्र से महज 286 करोड़ रुपये मदद के तौर पर मिले हैं। झारखंड खनिज रूप से संपन्न होते हुए भी देश का गरीब राज्य है। रोजगार के साधन नहीं हैं, जिससे बड़े पैमाने पर लोग रोजी-रोटी की तलाश में राज्य से बाहर जाते हैं। गरीबी की वजह से झारखंड से बच्चियों की सर्वाधिक तस्करी होती है। केंद्र ने इसके पहले राज्य में भाजपा की सरकार होने के नाते, जितनी मदद की, उसका आधा-तिया भी कर दे तो शायद सूबे की स्थिति में परिवर्तन हो जाये।
केंद्रीय सहयोग की वास्तविकता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दो बार प्रधानमंत्री ने मुख्यमंत्रियों के साथ वीजियो कांफ्रेंसिग की। झारखंड के मुख्यमंत्री को बोलने तक का मौका नहीं दिया गया। इस बीच झारखंड से बाहर गये लोगों को वापस लाने का नैतिक दबाव राज्य सरकार पर बढ़ गया है। खासकर तब, जब उत्तर प्रदेश, गुजरात, मध्यप्रदेश जैसी कई राज्य सरकारों ने अपने लोगों को दूसरे प्रदेशों से बुला लिया है। हेमंत वीडियो कांफ्रेंसिंग में अपनी पीड़ा पीएम को बताना चाह रहे थे, लेकिन उन्होंने दोनों बार मौका नहीं दिया गया। आखिरकार उन्हें पीएम को पत्र लिखना पड़ा। पत्र के मजमून शालीन हैं और गिला-शिकवा के बदले उसमें आग्रह का भाव ज्यादा है।
झारखंड में अगर सरकारी स्तर पर कोई चूक हुई है तो वह है लाक डाउन के बावजूद एक मंत्री के निर्देश पर राज्य में एक शहर से दूसरे शहर बसों में लाद कर लोगों को अपने घर जाने की व्यवस्था की गयी। अगर इसे उल्लंघन मानें तो इससे बड़ा उल्लंघन तो उन राज्य सरकारों ने की है, जो दूसरे राज्यों से अपने यहां के प्रवासी लोगों को बसों में भेज कर लाये। उत्तर प्रदेश सरकार ने तो 200 एसी बसें भेज कर राजस्थान के कोटा से अपने बच्चों को बुलवाया।
हेमंत सोरेन ने क्या लिखा पीएम को भेजे गये पत्र में
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