संपूर्ण क्रांति की याद दिलाता इंदिरा गांधी का आपातकाल

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आपातकाल जिन परिस्थितियों में लगा या इंदिरा गांधी ने लगाया, उसकी बड़ी वजह जयप्रकाश नारायण की अगुआई में छिड़ा छात्र आंदोलन था। उस आंदोलन ने कुछ बड़े सवाल उठाए, जिनमें महंगाई, शिक्षा और बेरोजगारी की समस्या को लेकर चिंताएं थीं। सरोकारों की बातें थी, संपूर्ण क्रांति का सपना भी था…
आपातकाल के 33 साल बीत चुके हैं..लेकिन जयप्रकाश आंदोलन के दौरान उभरे तमाम सवाल आज भी भारतीय परिप्रेक्ष्य में हल होने का इंतजार कर रहे हैं…
जयप्रकाश नारायण की जीवनी स्टेट्समैन के संपादक रहे
अजित भट्टाचार्जी ने अंग्रेजी में जेपी नाम से लिखी है…उसके कुछ अंशों का हिंदी में अनुवाद का मुझे भी सौभाग्य मिला..जिसे एक बड़े प्रकाशक ने छापा है…
उस किताब में जयप्रकाश को लेकर कई संस्मरण हैं..उस किताब से गुजरते हुए आप उस दौर के मानस और चिंताओं से वाकिफ हो सकते हैं..
उस दौर में तमाम विपक्षी नेता और युवा जयप्रकाश के साथ खिंचे चले आ रहे थे..बेशक तब चंद्रशेखर कांग्रेस में थे, लेकिन उनका रागात्मक रिश्ता जयप्रकाश से बना हुआ था..जयप्रकाश के खिलाफ इंदिरा की कार्रवाई का विरोध करने के चलते उन्हें भी जेल भेज दिया गया…जेल में रहते वक्त जयप्रकाश ने डायरी लिखी थी..अंग्रेजी में प्रिजन्स डायरी शीर्षक से लिखी उस डायरी का हिंदी में आनंद पेपरबैक्स ने मेरी जेल डायरी नाम से छापा था…चंद्रशेखर ने भी जेल डायरी लिखी थी…
बहरहाल चंद्रशेखर ने उन दिनों जयप्रकाश नारायण को एक चिट्ठी लिखी थी..वह चिट्ठी आपातकाल की बरसी पर मुझे हर बार याद आती है..
जयप्रकाश के आंदोलन में लगातार विपक्षी नेताओं और युवाओं का साथ मिलता गया…इससे जयप्रकाश आंदोलन के सेनानी उत्साहित थे…लेकिन चंद्रशेखर सशंकित थे..
उन्होंने अपनी चिट्ठी में लिखा था, ‘आप सोचते हैं कि ये लोग व्यवस्था परिवर्तन के लिए आ रहे हैं तो आप गलत हैं..दरअसल ये लोग सत्ता की चाह में आ रहे हैं….ये लोग व्यवस्था में बदलाव नहीं करेंगे..बल्कि आने वाले दिनों में अपनी-अपनी जातियों के नेता साबित होंगे।’
चंद्रशेखर कितने सही थे, इसका उदाहरण लालू, मुलायम या उस दौर में उभरे तमाम नेता हैं..जो समाज बदलने का सपना दिखाते-दिखाते अपनी-अपनी जातियों के नेता बनकर रह गए हैं..
यह बात और है कि 1984 में हार के बाद अगले चुनावों में जीत के लिए चंद्रशेखर भी बलिया में अपनी जाति पर ही ज्यादा भरोसा करने लगे थे…
आपातकाल के बाद जिन नए सपनों को पूरा होने की उम्मीदें थीं, निश्चित तौर पर वे धाराशायी हुए…आपातकाल की एक उपलब्धि यह जरूर रही कि नागरिक स्वतंत्रता को लेकर चेतना बढ़ी…जिसे नकारपाना अब शायद ही किसी सरकार के वश में हो…इसलिए यह कहना कि मौजूदा सरकार के दौर में फासीवाद बढ़ रहा है, या अघोषित आपातकाल है, बेमानी है..जिन्होंने आपातकाल को भोगा है, उन्हें पता है कि इंदिरा-संजय के खिलाफ बोलना कितना बड़ा गुनाह था…अब तो रोजाना कोई न कोई प्रधानमंत्री को गाली देता है.

  • उमेश चतुर्वेदी
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