राजमहल की पहाड़ियों में सबसे पहले जन्म हुआ था मानव का

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दुमका। पुरातत्त्वविद् पंडित अनूप कुमार वाजपेयी द्वारा लिखित विश्व की प्राचीनतम सभ्यता नामक शोध पुस्तक का दुमका के जनसम्पर्क विभाग सभागार में प्रयास फाउंडेशन फार टोटल डेवलपमेंट संस्थान, दुमका के बैनर तले इतिहासकारों, लेखकों, पदाधिकारियों, पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा सामुहिक रूप से लोकार्पण किया गया।

लेखक श्री वाजपेयी ने पुस्तक के विषयवस्तु पर प्रकाश डालते हुए दावा किया कि मानव की सृष्टि सर्वप्रथम विश्व की प्राचीनतम राजमहल पहाडियों पर हुई थी। आज भी यहाँ की पहाडि़यों पर उन प्राचीनतम मानवों के पदछाप बहुतायत में हैं, जिनकी औसत लम्बाई 13 से 14 फीट तक थी। पदछापों की कई तस्वीरें भी पुस्तक में प्रकाशित हैं।

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उन्होंने कहा कि अबतक उन्हें जितनी जगह मानवों के पदछाप मिले हैं, उनमें सबसे महत्त्वपूर्ण है दुमका जिला के जरमुण्डी अंचल स्थित घाघाजोर नामक एक पतली नदी के किनारे स्थित चट्टान, जिसपर कुल 9 की संख्या में मानवों के पदछाप हैं। चट्टान की विशेषता यह है कि उस पर हिरण पशु के खुर के भी दो छाप हैं। साथ ही उस पर बहुत ही लम्बे साँपों के जीवाश्म हैं। उन्होंने यह भी बताया कि सरैयाहाट अंचल की मटिहानी पहाड़ी और खिल पहाड़ी पर भी मानवों के एक-एक पदछाप हैं, जिनकी तस्वीरें पुस्तक में हैं।

लेखक वाजपेयी ने कहा कि दुमका जिला के शिकारीपाड़ा अंचल में चंदलघाट नाला नामक एक पतली नदी के किनारे निर्मित और अर्धनिर्मित पाषाण हथियार दबे पड़े हैं, जिनसे पता चलता है कि वह स्थान पाषाण हथियारों के निर्माण और निर्यात का केन्द्र था। मानवों के पदछाप वाली पहाडि़यों और चट्टान को उन्होंने अबिलम्ब सुरक्षित करने की माँग सरकार से की तथा यह दावा किया कि ऐसे छाप तब के हैं, जब धरती के बहुत से स्थलीय खण्ड संयुक्त थे। उस समय दक्षिण अफ्रीका के पहाड़ राजमहल पहाडि़यों से जुड़े हुए थे। यह बात 30 करोड़ वर्ष से अधिक पुरानी है।

लेखक वाजपेयी ने पुस्तक के माध्यम से एक और सनसनीखेज दावा किया है कि संताल परगना सहित प्राचीन अंग क्षेत्र में दफन है एक सभ्यता, जो हड़प्पा सभ्यता से भी प्राचीन है। इस बात से सम्बन्धित कई पुरातात्त्विक साक्ष्य पुस्तक में प्रस्तुत किये गये हैं। सभ्यता से सम्बन्धित साक्ष्य उन्हें विशेषकर साहेबगंज, गोड्डा, दुमका,बाँका और भागलपुर जिले में मिले हैं।

कार्यक्रम में मोजूद इतिहासकार डा. सुरेन्द्र नाथ झा ने आरोप लगाया कि पाश्चात्य विद्वानों ने बहुत-सा गलत इतिहास पढ़ाया है। उन्होंने कहा कि इस पुस्तक में लिखित बातों को प्रमाणित करने में हम मिलकर जीतेंगे। निश्चित रूप से अंग क्षेत्र की सभ्यता ही संसार की प्राचीनतम सभ्यता है।

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