भाजपा से पिंड छुड़ाने के फेर में हैं नीतीश कुमार

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बिहार के लोग, जो बाहर फंसे हुए हैं, उनसे फीडबैक लेकर उनकी परेशानियों दूर करें। जो घर आ गये हैं, उनकी पहचान कर टेस्ट करायें और जरूरी मदद करें। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कोरोना वायरस से उत्पन्न स्थितियों की समीक्षा के दौरान ये निर्देश दिये।
नीतीश कुमार

पटना। बिहार की राजनीति पूरी तरह इलेक्शन मोड में दिख रही है। राजग के घटक दल खुद में तालमेल 2019 के आम चुनाव तक बिठाये रखने में कामयाब होंगे, मौजूदा हालात को देख कर ऐसा नहीं लगता। भाजपा को छोड़ राजग के तीन घटक दल एक ओर झुके दिखते हैं तो महागठबंधन में सब अपनी ताकत बढ़ाने की जुगत में लगे हैं। राजग की बिहार इकाई की महत्वपूर्ण बैठक 7 जून को पटना में होने वाली है। इससे पहले बिहार में राजग के महत्वपूर्ण घटक जदयू ने बैठक की और बिहार में नीतीश के चेहरे को आगे कर आम चुनाव लड़ने का फरमान सुना दिया है। एक तरफ राजग की सबसे बड़ी घटक पार्टी भाजपा अब तक नरेंद्र मोदी के चेहरे पर 2014 का आम चुनाव जीतने में कामयाब रही थी। 2014 के बाद जिन राज्यों में विधानसबा के चुनाव हुए, वहां भी ज्यादातर राज्यों में मोदी के नाम पर ही वोट भाजपा ने हासिल की। मोदी के कार्यकाल की उपलब्धियां गिनाने में केंद्रीय मंत्रिमंडल के तमाम सदस्य फिलवक्त मशगूल हैं। ऐसे में यह कहना कि मोदी को किनारे कर बिहार में नीतीश के चेहरे को आगे कर आम चुनाव लड़ने की जदयू की घोषणा राजग से जदयू की बढ़ती दूरी की ओर इशारा करता है।

जदयू ने बड़े सधे कदमों से बिहार को विशेष राज्य के दर्जे के दबे मसले उभारना शुरू किया है। सावधानी जदयू ने यह बरती है कि इस मुद्दे पर सर्वदलीय बैठक हाल ही में बुलाई और सबने इस मुद्दे पर एका दिखाई। इसी मुद्दे पर तमिलनाडु में राजग के एक घटक दल टीडीपी के नेता चंद्र बाबू नायडू ने अपनी पार्टी को राजग से अलग कर लिया। यानी भाजपा से नाता तोड़ने की सधी चाल नीतीश कुमार चलने में अभी तक कामयाब रहे हैं। अब भाजपा के सामने दो ही स्थितियां हैं- अव्वल तो वह बिहार को विशेष राज्य के दर्जे की बात मान ले या इससे मिलती-जुलती कोई पेशकश करे, जिसे नीतीश अपनी उपलब्धि के रूप में जनता को बतायेंगे। नहीं मानती है तो भाजपा से रिश्ता तोड़ने का इसे माकूल अस्त्र बना सकते हैं। भाजपा जदयू की इस शर्त को भी मानने के लिए तैयार नहीं होगी कि बिहार में सारे चुनाव नीतीश के चेहरे पर लड़े जायें। उपचुनावों और कर्नाटक विधानसभा में भाजपा की छीछालेदर को देखते हुए नीतीश अपने दोनों हाथों में लड्डू रखना चाहते हैं। या तो भाजपा उनकी शर्तें मान कर बिहार में उन्हें हीरो बनने का मौका दे दे या उनकी मंगें खारिज कर उन्हें पल्ला जाड़ने का बहाना दे दे।

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राजग के दूसरे घटक दल भी कुलबुला रहे हैं। राम विलास पासवान को दलितों की चिंता होने लगी है। वह उनके हितों को लेकर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से मिल आये। उपेंद्र कुशवाहा भी शिक्षा व्यवस्था में खामियां गिनाते फिर रहे हैं। इन नेताओं की एक खास बात यह है कि राजग में रहते हुए एक दूसरे को फूटी आंख नहीं सुहाने वाले कुशवाहा और पासवान नीतीश से हाल के दिनों में लगातार मिलते रहे हैं।

बिहार में राजद, कांग्रेस और हम के नेता गलबहियां पहले से ही डाले हुए हैं। राजद की ताकत का एहसास जितना उसके सहयोगी बने दलों को है, उससे कम जदयू को नहीं। अगर नीतीश राजग से पल्ला झाड़ते हैं तो उनका काम राजद के बिना नहीं चलने वाला। अब गेंद पूरी तरह राजद के पाले में है। राजद ने अगर पिछले विधानसभा चुनाव की तरह नीतीश को बड़ा भाई मान लिया तो बिहार में फिर एक नया गुल खिल सकता है। आने वाले दिनों में फिलवक्त की धुंधली तस्वीर और साफ होगी।

  • रत्नेश राज
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