नवीन शर्मा
रांची। पिछले करीब दस दिनों से सबकी जुबान पर खूंटी ही है। इसकी तात्कालिक वजह बन रही है पत्थलगड़ी। सांसद कडिय़ा मुंडा के आवास की सुरक्षा में तैनात चार जवानों को पत्थलगड़ी समर्थक 26 जून को घर से अगवा कर ले गए थे। इसके बाद जब सरकार ने अपनी पूरी ताकत लगाकर अगवा जवानों को छुड़ाने के लिए भारी संख्या में जवानों को लगा कर दिन रात एक किया, तब कहीं जाकर अगवा जवानों को मुक्त किया गया। वहीं इनसे लूटे गए हथियार अभी भी नहीं मिले हैं।
खूंटी में इतनी विकट स्थिति की कोई एक वजह नहीं गिनाई जा सकती है। इसके कई पेंच हैं और इसके जिम्मेदार भी कई हैं। सबसे पहले तो यह बात स्वीकार करनी चाहिए कि केंद्र व राज्य सरकारें आजादी के 70 साल बाद भी ग्रामीण इलाकों में विकास की किरणें नहीं पहुंचा सकीं हैं। खासकर आदिवासी बहुल इलाकों खूंटी, गुमला, सिमडेगा, लोहरदगा, सिंहभूम और संथाल परगना के जिलों में हालात ज्यादा ही बदतर हैं।
आज की तारीख में भी इन जनजातीय बहुल इलाकों के अधिकतर गांवों तक पक्की सड़कें नहीं बन पाई हैं। स्वास्थ्य केंद्र बने भी हैं तो वहां डॉक्टर जाने की कल्पना भी नहीं कर सकते। कभी-कभार या सप्ताह में एक-दो दिन नर्स ही देवी के समान अवतरित होती हैं। सरकारी स्कूलों की हालत भी चिंताजनक हैं। अधिकतर स्कूलों में पर्याप्त शिक्षक नहीं हैं। पारा शिक्षकों के भरोसे कई स्कूल खुलते हैं। बच्चे एमडीएम खाने आते हैं। पढ़ाई होना यहां जरूरी नहीं है। अब कम स्कूली छात्रों की संख्या को बहाना बना कर स्कूलों का पास के स्कूलों में विलय किया जा रहा है। सरकार इसका कारण नहीं जानना चाहती कि बच्चों की संख्या कम क्यों हो रही है। पहले पर्याप्त शिक्षकों व सभी सुविधाओं से युक्त स्कूल तो दीजिए। उसके बाद भी अगर बच्चे कम होते हैं, तब आप विलय का बहना बना कर स्कूलों की संख्या कम कीजिए।
शिक्षा और स्वास्थ्य के प्रति सरकार के उपेक्षापूर्ण रवैये की वजह से ही ईसाई मिशनरियों को इन जनजाति बहुल इलाकों में अपना काम करने का खुला मैदान मिला। अंग्रेजों के समय से ही ईसाई मिशनरी इन इलाकों में सक्रिय रही है। इन्होंने स्कूल व कॉलेज खोलकर शिक्षा के क्षेत्र में अपनी गहरी पैठ बनाई है। वहीं अस्पतालों के जरिए भी जनजाति लोगों को स्वास्थ सुविधाएं मुहैया कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। खैर, इन दोनों क्षेत्रों में ईसाई मिशनरियों ने बहुत ही अच्छा काम किया है, लेकिन अफसोस की बात यह है कि यह निःस्वार्थ सेवा का मामला नहीं है। इसके पीछे सीधा मकसद धर्म परिवर्तन का रहा है। विदेशों से आनेवाले पैसे के बल पर शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं देने की एवज में भोले-भाले आदिवासियों का बड़े ही सलीके से धीरे-धीरे धर्म परिवर्तन का चक्र चलता रहा है। आज हालत यह है कि सिमडेगा जिले के अधिकतर आदिवासी ईसाई बन गए हैं। रांची व खूंटी जिले में भी ईसाइयों की तादाद काफी बढ़ी है। ईसाई धर्म मानने वाले लोगों ने ही इस इलाके में जनजातियों को दी जानेवाली आरक्षण की सुविधा पर एक तरह से कब्जा जमा रखा है। अधिकतर सरकारी नौकरियों में आपको ईसाई धर्म मानने वाले लोग ही मिलेंगे, सरना आदिवासी कम।
जंगल बहुल आदिवासी इलाका उग्रवादियों के लिए भी सुरक्षित पनाहगाह रहा है। यहां माओवादी और पीएलएफआई ने अपनी सुरक्षित मांद बना रखी है। इसके अलावा कई आपराधिक गिरोह भी सक्रिय हैं। इस इलाके में इन लोगों को काफी आसानी से बंदूक ढोनेवाले कैडर मिल जाते हैं।
इस तरह से इन इलाकों में जब सरकार अपने उपेक्षापूर्ण रवैये के कारण विकास संबंधी काम नहीं कर पाई तो इन इलाकों में ईसाई मिशनरी, उग्रवादियों व आपराधिक गिरोहों को पनपने का मौका मिला। उग्रवादी और आपराधिक गिरोह इस इलाके में अफीम की खेती भी करते हैं। इस इलाके के सभी तरह के सरकारी कार्यों के ठीकेदारों से ये तय लेवी वसूलते हैं। लेवी नहीं देनेवालों की साइट पर हमला होता है। कर्मचारियों से मारपीट कर काम में लगी मशीनें व वाहन जला दिए जाते हैं। इस पर भी बात ना बने तो हत्या तक कर दी जाती है। ये तीनों ही नहीं चाहते कि इन इलाकों में विकास हो। अगर पर्याप्त विकास होगा तो इनका धंधा बंद हो जाएगा। अब ये तीनों मिलकर खूंटी में पत्थलगड़ी के नाम पर ग्रामीणों को सरकार के खिलाफ भड़काने का काम कर रहे हैं।
अब केंद्र व राज्य सरकार की समझदारी इसी में है कि वह ग्रामीणों को विश्वास में लेकर इन इलाकों में विकास के सभी तरह के काम ईमानदारी से करे, जो जमीन पर भी साफ नजर आएं। इससे इन तीनों समूह को धीरे-धीरे करके खत्म किया जा सकेगा।
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