कोरोना की माया: कहीं चिराग जलाए, कहीं बुझाए………                   

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कोरोना की पहुंच पेट के बाहर तक ही नहीं रही, पैठ अंदर तक हो गई है। कोरोना साथ लिए आ रहे हैं शिशु। ऐसे में सहज सवाल- कौन है कोरोना से सुरक्षित? पढ़िए, कोरोना डायरी की इक्कीसवीं किस्त वरिष्ठ पत्रकार डॉ. संतोष मानव की कलम से।
कोरोना की पहुंच पेट के बाहर तक ही नहीं रही, पैठ अंदर तक हो गई है। कोरोना साथ लिए आ रहे हैं शिशु। ऐसे में सहज सवाल- कौन है कोरोना से सुरक्षित? पढ़िए, कोरोना डायरी की इक्कीसवीं किस्त वरिष्ठ पत्रकार डॉ. संतोष मानव की कलम से।

कोरोना की माया ही है कि इस वायरस ने मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार के अनेक गांवों को रौशन किया है, वहीं अनेक घरों के चिराग बुझा दिए हैं। उन घरों में अब घुप्प अंधेरा है। पढ़िए, कोरोना डायरी की उन्नीसवीं कड़ी वरिष्ठ पत्रकार डॉ. संतोष मानव की कलम से । 

कोरोना डायरी:19

कोरोना की माया के कारण बेचिरागी गांव आबाद हो गए हैं। बेचिरागी मतलब ऐसे गांव, जहां चिराग न जले। धुप्प अंधेरा हो वहां। अब ऐसे अनेकानेक गांवों में चिराग जलने लगे हैं। गांव रौशन हो गए। चहलपहल बढ़ गई। बुंदेलखंड के गांवों में ऐसा खूब हुआ है, हो रहा है। दरअसल, रोजी-रोटी की तलाश में इन गांवों से पलायन हुआ। गांवों में इक्का-दुक्का बूढे़, अशक्त रह गए या पूरा गांव ही खाली हो गया। सालों बेचिरागी रहे गांव।  अब कोरोना के प्रकोप से रिवर्स पलायन हो रहा है। लोग महानगरों से गांवों की ओर लौट रहे हैं। अपनी झोपड़ियों, मकानों को संवार रहे हैं। अपने खेतों की मिट्टी में अपना नसीब फिर से देखने लगे हैं। वहीं गांव की मिट्टी अब रोटी देगी, जिसे छोड़ गए थे।  लोग गांव लौटे तो चिराग जलने लगे। गांव रौशन हुआ। प्रयागराज के पास एक गांव है-संसारपुर। यहाँ से हजारों कमाने गए थे। अब सैकड़ों लौट आए हैं। साथ लाए हैं सैकड़ों कहानियां। शहर का दर्द, शहरी उपेक्षा। गांव में सुकून पा रहे हैं।  कहते हैं-अपने तो अपने होते हैं। खबरें कहती हैं कि बुंदेलखंड में ऐसे-ऐसे गांव रौशन हो गए हैं, जो एकदम वीरान थे। एक भी आदमी नहीं। अब वे आबाद हैं-वाया कोरोना वायरस। और इसी कोरोना ने अनेक घरों के चिराग बुझा दिए हैं। कमाने वाला ही नहीं रहा। घरों के होनहार ही चले गए-खा गया कोरोना। किसी-किसी घर से चार-चार, पांच-पांच अर्थियां उठवा दी कोरोना ने । कोरोना ने मंजर दिखाए कैसे-कैसे।

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सुनिए, क्या दिखाए और क्या दिखाएगा अभी। जो थे दुनिया में और जो हैं उनकी तो छोड़िए, जो अभी दुनिया में नहीं आए हैं, उन अजन्मे चिरागों पर भी है कोरोना की नजर। रिसर्च बताते हैं कि गर्भ में पल रहे चिरागों को भी कोरोना से उतना ही खतरा है, जितना छोटे बच्चों को। डॉ. कह रहे हैं बुजुर्ग और बच्चे सावधान और रिसर्चर कह रहे हैं गर्भस्थ भी सावधान। गर्भ में शिशु सुन तो सकता नहीं, इसलिए मां-बाप ही रहें सावधान। इसलिए दो शब्द तैर रहे हैं-सोशल डिस्टेंसिंग और फिजीकल डिस्टेंसिंग। मायने-मतलब निकालते रहिए।

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जीवन, जीवन के पहले और जीवन के बाद भी यानी मौत के बाद भी कोरोना छोड़़ता नहीं। भारतीय संस्कार-परंपरा में मौत के बाद दुश्मन को माफ कर दिया जाता है। मृतक की आलोचना नहीं की जाती। कदाचित इसी उदार परंपरा का असर है कि यहां हर मृतक स्वर्गीय होता है, दुष्ट-पापी-हत्यारे भी नारकीय नहीं होते। पर वायरस यह सब नहीं जानता। वह भारतीय नहीं, चीनी जो ठहरा। रिसर्चर बता रहे हैं कि मृत शरीर में वायरस कब तक जीवित रहेगा, इसकी कोई सीमा-रेखा नहीं है। वह सालो-साल रह सकता है। इसलिए संक्रमित की मौत होने पर उसको तुरंत सील-पैक में जलाने की सलाह दी जा रही है। मृतक को न दफनाने की एडवाइजरी है। पर आस्थाएं-परंपरा अनेक दफा एडवाइजरी नहीं मानती। इसलिए अनेक देशों में दफनाने से जबरिया रोका भी गया है।

देखिए कि कोरोना की दुष्टता इतनी भर नहीं है। वह रंग-रुप बदलता रहता है, ठीक जिंदगी की तरह। लक्ष्ण बदलता है, गिरगिट की तरह। पहले पांच-सात लक्ष्ण थे, अब पचास बता दिए गए हैं। ढूंढते रहो। पहले सर्दी-खांसी, बुखार-दर्द और अब नसों में ब्लाकेज, सूजन, शरीर पर लाल निशान। जब तक समझ आए, यमराज ही धमक आएं? कोरोना और यमराज में सांठगांठ तो नहीं? दुनिया को श्मशान बनाने पर तुला यह वायरस अब तक 52 लाख लोगों को डंस चुका है। इसमें से तीन लाख बत्तीस हजार की मौत हो चुकी है। तमाम सावधानियों के बावजूद भारत देश में इसने अब तक एक लाख बीस हजार को डंसा है, इसमें से लगभग छत्तीस सौ लोग जान गवां चुके हैं। यह कब तक रहेगा, कितनों को खाएगा, अनुमान लगाना भी कठिन है। अब तक के वायरस अटैक में से सबसे खतरनाक और मारक है कोरोना।

कोरोना अवधि का अनुमान न होने के कारण ही अब घीरे-घीरे बंदी खत्म की जा रही है। आखिर कब तक बंद रहे देश? अब एक ही रास्ता है-सावधानी। सावधानी हटी, दुर्धटना घटी, हमेशा याद रखना होगा । कहते हैं कि दुर्भाग्य कभी अकेले नहीं आता। यह अपने साथ बहुत कुछ लाता है। क्या एम्फन तूफान कोरोना ही लाया? नहीं ऐसा नहीं है। पर एक झटके में अस्सी बेशकीमती प्राण और करोड़ो की चोट दे गया एम्फन। रटते रहिए कोरोना-एम्फन। जागते रहो कि कोरोना जिंदा है।

(लेखक दैनिक भास्कर, हरिभूमि, राज एक्सप्रेस के संपादक रहे हैं)

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