कोरोना काल में किसिम किसिम के विधायक, महापौर और पार्षद के दर्शन हुए। कोई वर्तमान से अतीत की ओर लौटता दिखा तो कुछ ने सेवा में जान ही कुर्बान कर दी। विधायक तो ऐसे मिले, जिन्होंने कानून को भी ठेंगे पर रखा। कोरोना काल ने कई ऐसे दृश्य उपस्थित किये, जिन्हें इतिहास याद रखेगा। कोरोना काल की डायरी में पढ़ें इस बारे में विस्तृत ब्योरा। बता रहे वरिष्ठ पत्रकार डा. संतोष मानव
कोरोना काल की डायरी- 12
- डा. संतोष मानव
महाभारत में यक्ष ने युधिष्ठिर से पूछा था- सबसे तेज गति किसकी है? युधिष्ठिर का जवाब था- मन की। कितना तेज दौड़ता है मन! क्षण में आकाश, क्षण में पाताल। इस क्षण उत्साह का आसमान, अगले ही क्षण निराशा का सागर। और, और इस कोरोना काल में तो मन ने ठहरना ही छोड़ दिया है। वह टिकता ही नहीं। वह बंधता ही नहीं। चंचल मन। इसे बांधे कैसे? इसे बांध भी कौन पाया? जिसने बांधा, वह योगी हो गया। लगता था, अब कोरोना बंदी से निजात मिलेगी। हम बेखटके आएंगे-जाएंगे। बंदिशों से मिलेगी आजादी। अब समझा, उन पक्षियों का दर्द, जिन्हें पिंजड़े में कर देते हैं कैद। जेल जीवन भी कुछ ऐसा ही होगा। है न? नहीं, ऐसा नहीं होगा। इससे कष्टकर होगा। चलो, चलकर महसूस करेंगे। अभी नहीं, फिर कभी। वादा रहा? हां, भाई। मैंने कब झूठा वादा किया। जो कहा, वह किया। बताओ, कब वादे से मुकरा? दो न, उदाहरण दो। फिर सरेंडर करो। अकड़ो नहीं। धैर्य रखो।
मन से मन की बात। खुद सवाल, खुद जवाब। क्या एक आदमी में दो मन होता है? बचपन में हिंदी वाले सर तो कहते थे। बुरा मन-अच्छा मन। बुरा वाला चंचल होगा। वह कहेगा- पापा के पैकेट से रुपए निकाल लो। झूठ बोल दो। कुछ नहीं होगा। अच्छा वाला मन, बोलेगा- नहीं, यह गलत है। ऐसा न करो। तुम जिस मन की बात मानोगे। कुछ समय बाद वही मन बचेगा। जिसकी बात नहीं मानोगे, वह मर जाएगा। इतने साल बाद भी दोनों जिंदा हैं सर। कहाँ, कोई नहीं मरा!
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सुनो, सुनते हो? आ जाओ नीचे। ब्रश कर लेना। नाश्ता—। तंद्रा भंग हो गई थी। यह आवाज न, जीने नहीं देती। यह कर लो, वह कर लो। बच्चा हैं क्या? सुनते हो? आना ही पड़ा नीचे? टेलीविजन…कश्मीर में शहीद अधिकारी की पत्नी से बात- देश आपको नमन करता है, कब आपकी आखिरी बार बात हुई थी? कोई ऐसी बात, जो आप दर्शकों से साझा करना चाहेंगी? देखो, मेजर की पत्नी। कैसे, निहार रही मृत देह। वह जो ताबूत में लेटा है, नाम क्या है/ था- मेजर अनुज सूद। ताबूत में आया है हमसफर। आंकाक्षा….नाम है न? क्या बीत रही होगी इस पर? चार माह ही हुए हैं विवाह को। मुझसे न देखा जाएगा। बंद करो। वह कौन थी, जो बात कर रही थी? वह पल्लवी शर्मा थी, शहीद कर्नल की पत्नी। दिमाग खराब हो गया हमारा। हम जा रहे हैं सोने।
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जगा, तो शाम हो गई थी। अथश्री महाभारत कथा। फिर कोरोना। फिर शराब। न शराबी मान रहे, न मान रहा कोरोना। सरकारों ने शराब पर 70-75 प्रतिशत कोरोना टैक्स लगा दिए। फिर भी मदिरालयों के आगे भीड़ कम नहीं हो रही। टैक्स लगा दो, लाठी चला लो- पर? पर क्या? झूम बराबर झूम शराबी….। बेशर्म। इतना ही बेशर्म कोरोना। कहाँ मान रहा। भागता ही जा रहा। देश में बीमार पचास हजार। मर गए पंद्रह सौ। आगे क्या होगा? लाकडाउन पार्ट फोर? गाजियाबाद में तो हो गया। कलेक्टर का आदेश है 31मई तक सब बंद। तेलंगाना में 29 तक बंदी। अभी नहीं मानेगा कोरोना। पापी, दुष्ट, निष्ठुर।
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इस कोरोना काल में मन की गति कुछ ज्यादा ही तेज है। क्या कोरोना ने बढ़ाई गति? शांत-शांति-शांति….। प्रभुजी…। आपने किशोरी पेडनेकर, बदरुद्दीन शेख, मुजफ्फर हुसैन का नाम सुना है? नहीं सुना होगा। अमनमणि त्रिपाठी, उमाशंकर अकेला? कोरोना काल के हाहाकार के बीच सारे नाम दब गए। ये लोगों के बीच जीने वाले लोग हैं- थे। इस कोरोना काल में इनके बारे में थोड़ी बात करते हैं। अच्छा कौन, बुरा कौन? आप खुद तय करना। हम बस, जानकारी देंगे। शांति-शांति….प्रभुजी। शांति।
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किशोरी पेडनेकर: मुंबई महानगरपालिका की महापौर हैं। शिवसेना की नेता हैं। वे लोअर परेल से अनेक बार पार्षद चुनी गईं। 2019 में मुंबई की महापौर चुनी गईं। इस कोरोना काल में वह अचानक नर्स की वेशभूषा में दिखीं। नायर अस्पताल में घंटों रहीं। नर्सों का मनोबल बढ़ाती रहीं। इसलिए चर्चा में हैं। प्रशंसा भी हो रही। उन्होंने नारा दिया- मुंबई के लिए कुछ भी। पेडनेकर 2002 तक जवाहरलाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट अस्पताल में नर्स थीं। राजनीति में आईं तो अस्पतालों से नाता टूट गया। पार्षद और फिर महापौर बनीं। इस कोरोना काल में उन्हें लगा कि मुंबई के लिए कुछ ज्यादा मेहनत करनी होगी। सो, वह सुबह से शाम तक महानगरपालिका और शाम से देर रात तक नायर अस्पताल में रहने लगीं। वह भी नर्स की वेशभूषा में। नर्स की पढ़ाई करने वाली युवतियों को सेवा कार्य से जोड़ती रहीं। उनका मनोबल बढ़ाती रहीं। पेडनेकर ने खुद कहा है कि वह अस्पताल के कर्मचारियों का मनोबल मजबूत करना चाहती थीं, इसलिए गईं।
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बदरुद्दीन शेख: अहमदाबाद नगर निगम के पार्षद। बेहरामपुरा इलाके से कांग्रेस पार्टी के पार्षद। नगर निगम में विपक्ष के पूर्व नेता। प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता भी थे। अहमदाबाद में कोरोना का प्रकोप हुआ, तो घर नहीं बैठे। घर-घर दवा-भोजन की व्यवस्था में जुटे रहे। इसी दौरान कोरोना की चपेट में आ गए। वे आठ दिनों तक अहमदाबाद के एसवीपी अस्पताल में जिंदगी और मौत से जूझते रहे। अततः हार गए। शेख के निधन से निराश कांग्रेस नेता शक्ति सिंह गोहिल ने कहा- गरीबों का ख्याल रखा। अपना ख्याल रखना भूल गया। शेख का जीवन गरीबों के काम आया। अगर थोड़ी सावधानी रखते तो और अच्छा होता।
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मुजफ्फर हुसैन: उज्जैन नगर निगम के वार्ड 32 से भाजपा के पार्षद थे। उज्जैन में बेकरी का काम करने वाले हुसैन अपने इलाके में खासे लोकप्रिय थे। उज्जैन में कोरोना प्रकोप हुआ, तो अपने स्कूटर से गली-गली भोजन बांटने लगे। कभी झोले में बेकरी उत्पाद लेकर ही निकल जाते। इसी दौरान कोरोना की चपेट में आ गए। उन्हें आरडी गार्गी अस्पताल में भर्ती कराया गया, लेकिन बच नहीं पाए। अस्पताल से जारी एक वीडियो संदेश में उन्होंने कहा था- मैं जल्दी कम बैक करूंगा। फिर काम में लगूंगा। अगर नहीं लौट पाया, तो दुआओं में याद रखना।
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अमनमणि त्रिपाठी: उत्तर प्रदेश के नौतनवा से निर्दलीय विधायक। कोरोना काल में लाकडाउन के दौरान नकली पास लेकर उत्तराखंड की सैर। सात साथियों के साथ बिजनौर में गिरफ्तार। चेकिंग के दौरान जगह-जगह हेकड़ी दिखाई। पिता का नाम अमरमणि त्रिपाठी। उत्तर प्रदेश का पूर्व मंत्री। एक कवयित्री की हत्या के आरोप में गोरखपुर जेल में सजा काट रहे। अमनमणि भी अपनी पत्नी सारा सिंह की हत्या का आरोपी। पेरौल पर जेल से बाहर।
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उमाशंकर अकेला: झारखंड के बरही से कांग्रेस के विधायक। पहले भाजपा से विधायक थे। लाकडाउन की धज्जियां उड़ाते पकड़े गए, तो चेक नाके पर तैनात अधिकारियों को धमकाया। विधायकी का रौब दिखाकर गिरफ्तारी से बचे।
कोरोना काल! कौन सही, कौन गलत? हे कोरोना।
(लेखक दैनिक भास्कर, हरिभूमि, राज एक्सप्रेस के संपादक रहे हैं)
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