अरुंधति रॉय अपने बयानों से विवादों की पर्याय बन गयी हैं

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अरुंधति रॉय अपने बयानों से विवादों की पर्याय बन गयी हैं। उनका ताजा विवादित बयान कोरोना को लेकर आया है। उन्होंने इस बार कहा कि भारत में कोरोना है ही नहीं।
अरुंधति रॉय अपने बयानों से विवादों की पर्याय बन गयी हैं। उनका ताजा विवादित बयान कोरोना को लेकर आया है। उन्होंने इस बार कहा कि भारत में कोरोना है ही नहीं।

अरुंधति रॉय अपने बयानों से विवादों की पर्याय बन गयी हैं। उनका ताजा विवादित बयान कोरोना को लेकर आया है। उन्होंने इस बार कहा कि भारत में कोरोना है ही नहीं। वहां एक वर्ग विशेष के खिलाफ कोरोना का इस्तेमाल किया जा रहा है। उनके इस बयान को लेकर सोशल मीडिया पर घमासान मचा है। सीधे शब्दों में कहें तो उनकी छीछालेदर हो रही है।

सुरेंद्र किशोर, वरिष्ठ पत्रकार
सुरेंद्र किशोर, वरिष्ठ पत्रकार

सुरेंद्र किशोर (वरिष्ठ पत्रकार) ने उनके विवादित बयानों का सिलसिलेवार ढंग से उल्लेख किया है। अरुधति की ताजा भारत विरोधी राय- शीर्षक से वे लिखते हैं- सन् 2008 में अरुंधति रॉय ने कहाः कश्मीर को भारत से स्वतंत्रता चाहिए। सन् 2010 में कहाः कश्मीर कभी भारत का अविभाज्य अंग नहीं रहा। सन् 2011 में कहाः पाकिस्तान ने अपने लोगों के खिलाफ कभी अपनी सेना का इस्तेमाल नहीं किया, जिस तरह भारत ने कश्मीर तथा अन्य राज्यों में किया। याद रहे कि इस बयान के लिए अरुंधति को बाद में माफी मांगनी पड़ी थी।

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इसी तरह सन् 2013 में कहाः अफजल को दी गई  फांसी भारतीय लोकतंत्र पर दाग है। सन् 2019 में बोलीः भारतीय नागरिकों से मेरी अपील है कि यदि एन.पी.आर के लिए सर्वे

करने के लिए सरकारी कर्मचारी आपके घर जाएं तो आप उन्हें अपना गलत नाम और पता बता दीजिए। सन् 2020 का उनका ताजा बयान हैः कोरोना संकट की आड़ में भारत सरकार हिन्दू-मुस्लिम के बीच तनाव बढ़ा रही है। हालात जातीय या सामूहिक संहार की ओर बढ़ रहे हैं।

अरुंधति ने एक बार इस देश के माओवादियों को गांधीवादी बताया था। अरुंधति राय के इसी तरह के भारत विरोधी बयान समय-समय पर आते ही रहते हैं। जब भी वह जुबान खोलती हैं, इस देश के खिलाफ आग ही उगलती हैं। कई लोग इस बात पर आश्चर्य व्यक्त करते हैं कि ऐसे देशतोड़क बयानों को लेकर सुश्री राय के खिलाफ सबक सिखाने वाली कार्रवाई क्यों नहीं होती?

कार्रवाई नहीं होने के कारण अन्य राष्ट्र विरोधी तत्वों को भी ऐसा करने के लिए प्रोत्साहन मिलता है। ठीक उसी तरह, जिस तरह इस देश के कुछ निजी इलेक्ट्रानिक चैनलों के डिबेट में बैठकर कई राष्ट्र विरोधी तत्व अक्सर आग उगलते रहते हैं। उससे उनके समर्थकगण उत्साहित होकर अपनी गतिविधियां यदाकदा तेज कर देते हैं। इससे शासन की कठिनाइयां बढ़ जाती हैं। यह भी आश्चर्य की बात है कि देश में आग लगाने वालों को कुछ प्रमुख न्यूज चैनल बढ़ावा क्यों देते हैं? संभवतः उन्हें इस बात की समझ ही नहीं है कि टी.आर.पी.-विज्ञापन रेवेन्यू से अधिक महत्वपूर्ण देश की  एकता-अखंडता है।

संजय पाठक
संजय पाठक

संजय पाठक (मीडिया प्रबंधन) लिखते हैः अरुंधति रॉय, भारत के बमुश्किल 10-12 प्रतिशत लोगों के पढने-लिखने वाली भाषा अंग्रेजी की एक लेखिका है, स्व-घोषित समाजसेवी हैं, फिल्म अभिनेत्री भी रहीं हैं और अपनी एक किताब- “द गॉड ऑफ़ स्मॉल थिंग्स” के लिये बुकर पुरस्कार भी उन्होंने प्राप्त किया है। भारत के परिप्रेक्ष्य में बुकर पुरस्कार पर बात फिर कभी।

अरुंधति देश के तमाम स्वनामधन्य विद्वानों के आंख की तारा, माओवादियों से लेकर आतंकवादियों तक की प्रबल पैरोकार, भारत की एकता-अखंडता को छिन्न-भिन्न करने में निरंतर रत रहने वाली महिला हैं। अभी हाल में ही उन्होंने जर्मन टेलीविज़न चैनल डॉयचे वैले पर एक निहायत घटिया इंटरव्यू दिया है। इस इंटरव्यू में वह कहती हैं कि भारत में कोरोना की कोई महामारी नहीं है और कोरोना की आड़ में एक वर्ग विशेष के लोगों का सामूहिक नरसंहार किया जा रहा है। वह कहती हैं कि वर्तमान हिंदुत्ववादी सरकार कोरोना का इस्तेमाल लक्षित समुदाय व विरोधियों की हत्या के लिए कर रही है।

यह कोई पहली बार नहीं हैं कि उन्होंने गैर-जिम्मेदार, राष्ट्रविरोधी व विघटनकारी बयान दिया है। 2010 में उन्होंने कहा- कश्मीर को भारत से स्वतंत्रता चाहिए। 2011 में बयान दिया – कश्मीर कभी भारत का अविभाज्य अंग नहीं रहा। 2013 में भारतीय सेना को कठघरे में खड़ा करते हुए कहा कि पाकिस्तान ने अपने लोगों के खिलाफ कभी अपनी सेना का इस्तेमाल नहीं किया, जिस तरह भारत ने कश्मीर तथा अन्य राज्यों में किया। हालांकि लानत-मलामत के बाद अरुंधति ने बाद में माफी मांग ली।

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.2019 में संसद भवन पर आतंकी हमले के आरोपी अफजल को दी गई  फांसी पर उन्होंने कहा कि यह भारतीय लोकतंत्र पर दाग है। 2020 में एनपीआर के लिए घर-घर जाकर सर्वे की प्रक्रिया पर उन्होंने  अपील जारी की कि यदि एनपीआर के लिए सर्वे करने के लिए सरकारी कर्मचारी आपके घर जाएं तो आप अपना  नाम रंगा-बिल्ला बता देना।

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हालांकि अरुंधति अपने इस तरह के कुकृत्यों ले लिए संक्षिप्त समय के लिए जेल भी जा चुकी हैं और माफी मांग कर जमानत पर हैं। पर यह घोर आश्चर्य  और गहन शोध का विषय है कि इस तरह के उल-जुलूल, विध्वंसक और विघटनकारी बयानों के लिए उनके ख़िलाफ़ सबक सिखाने लायक कार्रवाई क्यों नहीं होती? अरुंधति के और उनके जैसे तमाम अन्य के ख़िलाफ़ कठोर कार्रवाई न होने का ही दुष्परिणाम है कि तमाम अन्य राष्ट्र विरोधी तत्वों को भी ऐसा करने के लिए प्रोत्साहन मिलता है। आश्चर्य इस बात का भी है कि विघटनकारी, विध्वंसक विचारों के वाहक और सामजिक संरचना को छिन्न-भिन्न करने वाले बयानवीरों को लगभग सभी प्रमुख न्यूज चैनल उल-जुलूल बयान देने व हर गलत को सही ठहराने का मंच-मौका क्यों देते हैं?

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