पटना (अनूप नारायण सिंह)। जिनके रग-रग में अभिनय है। जिन्होंने रंगमंच की मिट्टी को अपने मस्तक पर लगाकर अभिनय की दुनिया में खुद के दम पर अपनी पहचान बनाई। हिंदी-भोजपुरी के साथ ही साथ कई क्षेत्रीय भाषाओं की फिल्मों में भी इनकी धाक है। रंगमंच से रुपहले पर्दे तक का सफर तय करने वाले संजय पांडे भोजपुरी के उन चुनिंदा कलाकारों की फेहरिस्त में शामिल हैं, जिन्होंने अपने अभिनय प्रतिभा के दम पर न खुद को सिर्फ रुपहले पर्दे पर स्थापित किया, बल्कि भोजपुरी फिल्मों को एक नई दशा और दिशा भी प्रदान की।
भोजपुरी फिल्मों में खलनायक का धाकड़ किरदार निभाते हैं संजय पांडेय। डेढ़ सौ से भी अधिक भोजपुरी फिल्मों में खलनायक का किरदार निभा चुके संजय पांडेय की फिल्म बलमुआ तोहरे खातिर 31 अगस्त को बिहार-झारखंड के सिनेमाघरों में रिलीज हो रही है। इस फिल्म में भी वे खलनायक की भूमिका में हैं।
उन्होंने कहा कि भोजपुरी फिल्मों का भविष्य उज्ज्वल है। उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ के कम्हरिया गांव निवासी सेना के अधिकारी रहे इन्द्रदेव पांडेय के वे इकलौते पुत्र हैं। सेना से रिटायर होने के बाद पिता ने मध्य प्रदेश के कटनी में रक्षा मंत्रालय के आयुध कारखाना में योगदान दिया। संजय पांडेय ने कटनी में अपने पिता के साथ रहकर संस्कृत से एमए तक शिक्षा ली। इसके बाद उन्होंने भोपाल के रंग विदूषक संस्थान में 1994 से 1997 तक कला का प्रशिक्षण लिया। वर्ष 1999 में मुंबई भाग्य आजमाने चले गए। मुंबई में संजय पांडेय ने पंडित सत्यदेव दुबे के थिएटर संवर्धन ग्रुप में दो साल तक काम किया।
टीवी सीरियल का सफर : संजय पांडेय ने टीवी सीरियल ज्वाइन किया। उनका पहला सीरियल स्टार प्लस पर अंतराल था। इसके बाद सात फेरे, किसी की नजर न लगे, बिन बिटिया आंगन सूना सहित कई सीरियल में काम किया। डेढ़ सौ से अधिक भोजपुरी फिल्मों में खलनायक का किरदार निभाने वाले संजय पांडेय की कुछ चर्चित फिल्में हैं। इनमें कहिया डोली लेके अइब, दिवाना, सात सहेलिया, राजा बाबू, आशिक आवारा, बंधन, निरहुआ हिन्दुस्तानी, औलाद, दिल बहार सवरिया, सिपाही, हम हैं हिन्दुस्तानी। हिन्दी फिल्मों में शहीद भगत सिंह, थ्री थर्टी मुंबई, एक से बुरा दो में भी काम किया।
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