राम के सहारे भाजपा, भागवत ने मंदिर के लिए अध्यादेश की बात कही

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  • मिथिलेश के. सिंह

नयी दिल्ली। आसन्न लोकसभा चुनाव 2019 में भाजपा का घोषित चुनावी एजेंडा चाहे जो हो, पर भरोसा उसे रामजी पर ही करना होगा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर.एस.एस.) प्रमुख मोहन भागवत ने इसका संकेत दे दिया है। भागवत ने कहा है कि सरकार को अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिए अध्यादेश लाना चाहिए। शिवसेना ने पहले यह मांग उठायी थी। उद्धव ठाकरे ने तो अयोध्या कूच की तारीख तक का ऐलान कर दिया है। इस बीच मोहन भागवत ने यही बात दोहरा दी है। इससे एक बात साफ हो गयी है कि भाजपा को अपनी पांच साल की उपलब्धियों के साथ मतदाताओं के बीच नहीं जाएगी, बल्कि राम मंदिर के निर्माण के लिए किये जा रहे प्रयास को भुनाने की कोशिश करेगी।

राफेल सौदे, कश्मीर के हालात, नोटबंदी की परेशानियां, जीएसटी से व्यवसायियों की नाराजगी, बैंकों को चूना लगा कर विदेश भागने वाले नीरव-विजय माल्या जैसे कई ऐसे मुद्दे हैं, जिनको लेकर भाजपा के प्रति लोगों में नाराजगी है। पांच साल के भाजपा शासन में उपचुनावों और विधानसभा के चुनावों के परिणामों से भाजपा के ग्राफ में गिरावट स्पष्ट झलकती है। मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और राजस्थान जैसे भाजपा के गढ़ माने जाने राज्यों में विधानसभा चुनाव को लेकर आने वाले सर्वेक्षण भाजपा को काफी निराश करने वाले हैं।

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दरअसल भाजपा भावनात्मक मुद्दों पर ज्यादा कामयाब होती है। यह उसका आजमाया नुस्खा है। याद करें, दादरी जैसी छोटी जगह पर हुई सामान्य घटना राष्ट्रीय फलक पर क्यों और कब फैली- बिहार विधानसभा चुनाव के के ठीक पहले। उत्तरप्रदेश, असम और बंगाल में चुनाव के पूर्व जेएनयू की घटना राष्ट्रीय स्तर पर समर्थन-विरोध का केंद्र क्यों बन जाती है। अगर राष्ट्र विरोधी गतिविधियों का जेनयू अरसे से केंद्र रहा है (जैसा भाजपा का आरोप है) तो वहां की एक घटना पर ही कार्रवाई की जरूरत क्यों महसूस हुई। देशभर के विश्वविद्यालयों में आजादी के सात दशक बाद राष्ट्रीय ध्वज की अनिवार्यता सरकार को क्यों महसूस होने लगी थी।

25 साल पहले अयोध्या में राम मंदिर बनाने और रथयात्रा निकाल कर संसद में अपनी सीटें बढ़ाने वाली भाजपा में अचानक कुछ महीनों से इसके लिए बेचैनी फिर क्यों बढ़ गयी है। संघ प्रमुख को अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए अध्यादेश लाने की वकालत संघ प्रमुख मोहन भागवत ने फिर से की है तो यकीन मानिए जनता का भरोसा जीतने के लिए भाजपा अपने इस ब्रह्मास्त्र का इस्तेमाल करना चाहती है, जो उसे 2019 की नैया पार लगा दे।

भावनाएं भुनाने का आजमाया नुस्खा भाजपा तब अख्तियार करती है, जब उसके पास बताने के लिए उल्लेखनीय उपलब्धि नहीं होती या कोई ज्वलंत मुद्दा नहीं रहता। पिछले लोकसभा चुनाव के वक्त कालाधन और महंगाई जैसे मुद्दे भाजपा के पास थे। इसलिए उसने भावनात्मक कार्ड बचा कर रखे, लेकिन अब आमजन को आकर्षित करने के लिए उसके पास कोई मुद्दा नहीं दिख रहा तो वह पुराना टोटका आजमा रही है। जन भावनाएं भड़काने के हथकंडे अपना रही है, जिससे वोटों की गोलबंदी कर वह लाभ हासिल कर सके।

मोदी सरकार की उपलब्धियों पर नजर डालें तो पड़ोसी नेपाल से भी हमारे संबंध ठीक नहीं रहे, जहां अवाजाही के लिए भारतीयों को वीजा भी नहीं लगता। रोटी-बेटी के ढेर सारे संबंध भी नेपाल से हैं। दुश्मनों को डिगाने के लिए 56 इंच के सीने की अनिवार्यता बताने वाले मोदी जी को बेहतर पता होगा कि पाकिस्तान किस तरह घूंट-घूंट पानी पिला रहा है। महंगाई से ऊबी जिस जनता ने राहत के लिए मोदी के नाम पर वोट डाले, वह डीजल-पेट्रोल या दूसरी जरूरी चीजों की महंगाई से और तबाह हो गयी है। काला धन वापसी की बात तो दूर, जनता के टैक्स से मिले पैसे उन धनकुबेरों के लाखों करोड़ के कर्ज की वापसी में देने पड़े हैं। ऐसे में भाजपा को अगले पांच विधानसभा चुनावों और कुछ ही दिनों बाद लोकसभा चुनाव के लिए कोई तो मुद्दा चाहिए। राम मंदिर ने 2 से बढ़ा कर भाजपा को लोकसभा में प्रचंड बहुमत तक पहुंचा दिया था। यह उसका आजमाया टोटका है। इस बार फिर भाजपा रामजी को अपनी कामयाबी का अस्त्र बनाने में जुट गयी है।

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